कवितागीत
अरे ओ रे कान्हा
मुझको नहीं अब चैन
आन बसो मोरे नैन
मुझको नहीं अब चैन
अरे ओ रे कान्हा
कान्हा रे कान्हा
मुझको नहीं अब चैन..
निर्मल दिल दो निश्छल नैना
मुझको तो बस तुझ संग रहना
तेरे मिलान की आस लगाये
ये ही जपू दिन रैना।
अरे ओ रे कान्हा
मुझको नहीं अब चैन
तू प्यारा आंखों का काजल
मैं व्याकुल बन बनी हूँ राधा
तेरे दर्श कर मन समझाऊँ
समझो अब तो बैन
अरे ओ रे कान्हा
मुझको नहीं अब चैन
देह है दो एक प्राण हुए हम
बंधा रहे ये प्रेम का धागा
तुम से प्रीत न टूट ये पाए
बने न मेरा भाग्य अभागा
अश्रु बहाए नैन।
अरे ओ रे कान्हा
मुझको नहीं अब चैन
अरे ओ रे कान्हा
मुझको नहीं अब चैन
आके बसो मोरे नैन
मुझको नहीं अब चैन