कविताअतुकांत कविता
शीर्षक
" सपना " 💐💐
सपने में दिखी थी वह
वैसी ही सुन्दर कनक छड़ी
सी जैसी बर्षों पहले थी।
आंखों में लिए हँसी ख्वाब
गालो की मोहक गहराई ।
कलाई में थामें दुपट्टे की कोर ,
चुभोने को तैयार नैनों के वाण ।।
सुनहरे फ्रेम मेंं जड़ी फोटो
में खड़ी दूर... कँही बहुत दूर...
शायद गगन के उस
पार से बुला रही थी!
नींद से जग मैं यादों में
उसकी डूबा, खुद को यकीन
दिला रहा था हाँ...
तब उसका चेहरा इतना स्याह न था।
सीमा वर्मा .. स्वरचित