लेखआलेख
बापू जन्मजात महात्मा नहीं थे. पढ़ने में एक औसत स्तर के छात्र थे. किशोरसुलभ दुर्बलताएँ भी उनमें थी. एक दिन अपने सभी अपराधों को एक कागज पर लिखकर पिता के सिरहाने रख दिया और पिता के हाथों किसी भी दंड की प्रतीक्षा करने लगे
मगर नियति को कुछ और ही करना था. पिता ने पत्र को पढा़ और दो बूँदें पत्र पर गिर गयी. शब्द धुँधले हो गये मगर वे बूँदें दो उजले मोती बनकर एक नये इतिहास की भूमिका लिख गयीं. वे स्वातिबिंदु आत्मचिंतन और पश्चात्ताप की दो सीपियों में ढलकर, सत्य और अहिंसा का पहला पाठ बनकर उस साधारण व्यक्तित्व को असाधारण बना गये.
ये दो अस्त्र विश्व की उस महाशक्ति को धराशायी कर गये जिसके साम्राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता था.
साबरमती के संत को कोटि-कोटि नमन
द्वारा : सुधीर अधीर