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मैंने आज बस इतना किया - Deepti Shukla (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

मैंने आज बस इतना किया

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मैंने आज बस इतना किया
पूजा करते हुए तुम्हारी
खुद को तुम समझ लिआ
जिसमे बसती थीं तस्वीर तेरी
उन नयनों को एक तस्वीर किया
माथे को रख दर पे तेरे
नयनों को मेरे कमल और
पैरों का तेरे चन्दन किआ

उठती ना थीं किसी के लिए
पहले ये नज़रे हमारी
पर देखते है उस सूरज को चंदा सा
माथे पे जब से तूने मीठा सां चुम्बन लिया

महकती है अब आती जाती फिजाये भी
आगोश में ले जब से हर सांस संग तेरा
स्पंदन हुआ
महके महके से है ये अलफ़ाज़ सारे
तेरे आना यूं नयी कोपलो को जैसे
गुलाबों नें बिखर के जैसे अभिनन्दन किआ

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