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कविताअतुकांत कविता
गिरिजा बरसों ना बरसे, घुमड़ घुमड़ रह रहे बस बदरा धरती की परिधि से उठ तब चल चली गिरिजा फिर अंधियारों में, हो अलौकित शक्तिपुन्ज गरज गरज गमक रही, दमक रही बन बिजुरि l