कविताअतुकांत कविता
यशोधरा
अनगिनत प्रश्न रातो में जगाये रहते
उत्कंठित मन, अश्रु अंजन संग
अविरल बहते
केशो सा काला जीवन
बिन आर्य के किस
गाथा में गूथें
मन के उदगार
कैसे शांत हो पाए
सांत्वना की माला
कैसे गल कंठ में पाए
देख अमिताभ की आभा
आँखों के पंछी देह पिंजर में
करून क्रंदन करते आते
फिर भी विरह में
शृंगार के गीत गाती रही
घर परिवार के
मैं कर्तव्य निभाती रही
तेरें केसरी सपनो ने
मेरें सिंदूर से रंग लिया
तेरे पग बढ़ें धरा पे,
मैंने विरह का विष पिया