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आशाओ के दीप जलाऊँ - Deepti Shukla (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

आशाओ के दीप जलाऊँ

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खाली घट से कब
किसकी प्यास बुझी है
जलके माटी तन की
राख़ बन जल में बही हैँ
सो मैं गीत प्रेम के गाऊँ
आशाओ के दीप जलाऊँ
विरह में गीत श्रृंगार के गाऊँ
निर्जन को घर बनाऊँ
सेज स्वप्न से सजा
पीर से पार मैं पाऊँ
शब्दों के फूल बिछा मैं,
सबका जीवन महकाऊँ
मैं गीत प्रेम के गाऊँ...
सूने मन आँगन को
कोयल सा चहकाऊँ
जिस पथ पे अवरोध हो
उस पथ चल बाँध बनाऊँ
मैं गीत प्रेम के गाऊँ...

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