कहानीलघुकथा
मेहनत- मजदूरी करके आजीविका चलाती वह मजबूर माँ दिन भर से भूखे अपने बच्चे को सुलाने का असफल प्रयास कर रही थी. खाली पेट नींद कैसे आती ? अंत में माँ को एक उपाय सूझा. उसे याद आया कि उसके बेटे को कहानी सुनते हुए सोने की आदत है.
उसने दुलारते हुए पूछा, " बेटा, कहानी सुनेगा ? ".
बेटे ने खुश होते हुए कहा, " हाँ, माँ, सुनाओ ना. ".
" बता, कौन सी कहानी सुनेगा ? परियो वाली ? "
" नहीं "
" भूत वाली ? "
" नहीं "
" राजा- रानी की "
" नहीं "
" शेर, हाथी, सियार की ? "
" नहीं, नहीं "
" खरगोश और कछुवे की ? "
" नहीं, नहीं, नहीं "
" फिर कौन सी कहानी सुनाऊँ, तू ही बता ", माँ ने तनिक झुँझलाते हुए पूछा.
" माँ, रोटी की कहानी सुनाओ ना ", बच्चे ने मासूमियत से कहा.
माँ निःशब्द हो गयी. कहानी मुँह की जगह आँखों से उसकी बेबस गंगा-जमुना बनकर बहने लगी.
ना जाने मुझे ऐसा क्यूँ लगता है कि यह बच्चा हम सबसे ज्यादा समझदार है. कम से कम अपनी प्राथमिकता को हम तथाकथित
बुद्धिजीवियों से बेहतर समझता है.
द्वारा: सुधीर अधीर