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कविताअतुकांत कविता
हे माँ शारदे मन की धरा ये हिल रही इसमे उर्जा के प्राण दे | सोई शक्ति को नवचेतना का अभिज्ञान दे | सज्ञानता की धुरी पे व्यग्र मन को डाल दे | मंथन से निकले जो कल्पतरू परिजात दे | हे माँ शारदे वरदान दे |