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कविताअतुकांत कविता
सहज़ हैं जीवन तू भॅवर मैं क्यूँ निर्मल मन तो उलझन क्यूँ झरना बन बस बहता जा, मन गागर में मंथन क्यूँ इस दिल में तुझ बिन कौन समाये, मेरे मन बस तू ही तू