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कविताअतुकांत कविता
नैना मुदु पाऊँ आज मेरी माँ के तन लिपट रहा हैं चन्दन लाली, बाली, काजल, कुसुमा महक रहा घर आँगन बड़ी सी बिंदिआ तिलक लगाई , बाज उठा मन का मृदंग डाली माँ ने झीनी झीनी स्वप्न लहरिया, भीग रहा मेरा तन मन