कविताअन्य
हिंदी हूं मैं तुम्हारी सिर्फ नाम की राष्ट्र भाषा हिंदी हूं मैं,
तिरस्कार इतना फिर भी न जाने कैसे अभी जिंदी हूं मैं|
यूं तो हर वर्ष मेरे नाम से हिंदी - दिवस मनाया जाता है,
बुझती सी मेरी सांसों की लौ को फिर से जलाया जाता है,
हिंदी हैं हम हिंद के हिंदी हमारी यूं मुझे बरगलाया जाता है
फिर क्यों सब कसमों वादों को चंद पलों में भुलाया जाता है,
अभिवादन में उसी समय दूसरी भाषा को भुनाया जाता है,
क्यों यूं मुझे जलाया जाता है बस इतनी सी शर्मिंदी हूं मैं|
हिंदी हूं मैं ............................
कार्यालयों को भी दफ्तर या फिर फिरंगी अंदाज में बुलाया,
न्यालय में भी अन्याय मेरे साथ फैसला उर्दू में ही सुनाया,
हर एक मार्ग दर्शक पट पर मुझे दूसरी के साथ ही फंसाया,
दूरभाष पर हर एक ने अभिवादन में हमेशा हेलो ही बुलाया,
संविधान बनाने वाले ने भी अनुच्छेद में मुझे कहां बैठाया,
क्यों मुझे राष्ट्र भाषा बनाया, इसी सोच ने खा लिंदी हूं मैं|
हिंदी हूं मैं। ......................
प्रथम शिक्षा मुझ से मैने सखियों में अभिमान सा दिखलाया,
जरूरी विषयों से हटाकर मुझे औकात में रहना सिखलाया,
प्रथम शिक्षा में भी मुझे फिरंगी संग आजकल है बिठलाया,
खुद हुए आजाद फिरंगियों से मेरी आजादी को है बिसराया,
बिन फिरंगी ' माचरा कार्यालयों में न अकेला लिखवाया,
कैसा दिवस मनवाया, निज नाम पर सिमटी सी बिंदी हूं मैं|
हिंदी हूं मैं तुम्हारी सिर्फ नाम की राष्ट्र भाषा हिंदी हूं मैं,
तिरस्कार इतना फिर भी न जाने कैसे अभी जिंदी हूं मैं|
मैन पाल माचरा
एक किसान वंशज