कहानीलघुकथा
#शीर्षक
" ऐक्सेंट वाली हिंदी"
" माँ आप बहुत दिनों से मेरे घर नहीं आई हो। इस बार तो आपको आना ही होगा,
"मैं टिकट बनबा कर भेज रही हूँ। तो बस तैयारी शुरु कर दीजिए आने की।"
फोन पर बिटिया की खुशी से भरी आवाज सुन, सुलभा हठात् हाँ या ना में उत्तर नहीं दे पाई।
लेकिन मन ही मन घबरा सी गई। बिटिया के निमंत्रण पर हर्षित तो बहुत होती है।
साथ ही एक विचित्र से मानसिक बोझ तले भी डूब जाती है।
वहाँ बच्चे और आस-पास के अंग्रेजियत भरे माहौल में अपने को कंही से भी फिट नही बैठा पाती है सुलभा।
मिलने आने-जाने वाली भीड़ में भी अकेली ही पाती है खुद को,
" ओहृ... फिर से वो अमरीकन ऐक्सेंट वाली अंग्रेजी झेलनी पड़ेगी पूरे तीन महीने"।
उन्हें चुप और कुछ जबाब न देते सुन उधर से बिटिया बोल पड़ी,
" क्या हुआ माँ? आप चुप क्यों हो गईं,
आखिर क्या प्रौबलम है आपकी ?
बेटों के यहाँ तो महीनों खुश हो कर रहती हैं।"
" जब मेरी बारी आती है तो सोचने लग जाती हो, अब ये तो फेयर नहीं माँ "।
क्या करे कैसे समझाए वो बिटिया को अपनी परेशानी?
"उसके यहाँ भाषा परिवर्तन के कारण कितनी जद्दोजहद से गुजरती हैं वे "
कभी-कभी तो भारी शर्मिंदगी उठानी पड़ती है, योंकि अक्सर बिटिया बीच में पड़ कर बात संभाल लेती है।
फिर भी ...।
कुछ नहीं बोल वे सिर थाम कर बैठ गई। हैं। उधर से बिटिया की मधुर आवाज कान गूंजी,
" माँ आप आईए तो सही, इस बार आपके लिए बच्चों ने कितनी सरप्राइजेज रखी हैं, आप पिछली बार और अब में बहुत फर्क महसूस करेंगी "।
"अगले हफ्ते टिकट पंहुच जाएगें बस आप तैयारी शुरु कर दें "।
अब उनके पास कोई अकाट्य तर्क नहीं बचा है। बुझे हुए मन से तैयारी शुरु कर दी।
अगले ही हफ्ते दामाद जी ,बच्चों और बिटिया की पसंद के तरह-तरह के उपहार से लदी-फदी, थकी हुई न्यूयॉर्क एअरपोर्ट पर खड़ी सुलभा दामाद जी के आने का इंतजार कर रही है।
ग्यारह बर्षीय नाती " श्रेयण " को पैरों पर झुका पाया,
" नानी, प्रणाम आप इधर खड़ी हो ",
"ममा और पापा उधर गाड़ी के पास वेट कर रहे हैं "।
" चलो मैं आपको लिए चलता हूँ"
कह कर उनके हाथ से लगेज ले लिए हैं।
उसकी अमरीकन ऐक्सेंट वाली मीठी हिंदी...सुलभा के कानों में मिश्री सी घुल रही है...।
वे मुस्कुरा उठी बाल गोपाल के मुँह से अपनी मीठी बोली सुन सोच रही हैं ,
"ओ वाओ... यही सुरीला सरप्राइज रखा है बच्चों ने मेरे लिए "।
इस बार तो पूरे छह महीने बिता कर ही वापस लौटूंगी।
सीमा वर्मा /स्वरचित