कविताअतुकांत कविता
सप्ताह के सातों दिन
यूं ही कट जाता है
एक आस लिए मन में
फुर्सत कब आता है
घर से बाहर तक उसको
कभी चैन नहीं आता
नारी के जीवन में
इतवार नहीं आता
कभी टिफिन बनाती है
बच्चों को जगाती है
कभी सास ससुर की चिंता में
वक्त बिताती है
पति के कदमों से ताल मिलातीहैं फिर भी किसी को उस पर
कभी प्यार नहीं आता
नारी के जीवन में
इतवार नहीं आता
तीज त्योहारों पर
चाहे काम दोगुना हो
थकती नहीं रुकती नहीं
करती ही रहती है
खुशियों के मेले में भी
वह बाजार नहीं आता
नारी के जीवन में
इतवार नहीं आता
अंजनी त्रिपाठी
गोरखपुर उत्तरप्रदेश