कहानीसंस्मरण
#शीर्षकः
" वे सुनहरे दिन "
शुभ शिक्षक दिवस की आप सबों को हार्दिक बधाई। मित्रों तरूणाई के मीठे दिनों की ऐसी कितनी ही यादें जिन्हें हम सब मन की गहराई में सहेज कर रखते हैं। तो आज मौका है और दस्तूर भी उन्हें फिर से जीवित करने का।
आज मैं उन्हीं में एक मधुर याद आप सबों को बताने जा रही हूँ।
हमारा स्कूल घर के पास ही हुआ करता था। हम बहने हमेशा पाँव-गाड़ी से ही स्कूल जाया करते।
लेकिन शिक्षक दिवस के दिन क्योंकि हम सभी रँग-बिरँगे पोशाक में सजे-धजे होते। इस कर के हमें उस दिन गाड़ी से स्कूल जाने की इजाजत मिल जाती थी।
बस फिर क्या था? विभिन्न रंग के फूलों वाले गुलदस्ते की तरह सजे-धजे हम सब रास्ते में हमारी जितनी सहेलियों के घर पड़ा करते। उन सबों को समेट कर एवं एक दूसरे की साज-सज्जा पर प्यार भरी छींटाकशी करते हुए शान से स्कूल में प्रवेश करते थे।
वो दिन खास हमारा होता था। ही-ही, हू-हू, हा-हा करते हुए सारा दिन गाने बजाने में कट जाता। तब बारी आती थी, ऑडिटोरियम में उस दिन के सबसे इन्ट्रेस्टिंग प्रोग्राम के।
जब सीनियर मोस्ट क्लास की लड़कियाँ जिन्हें हम दीदी बुलाया करते। बड़े ही प्यार से सभी आदरणीय शिक्षिकाओं को एक साथ बिठा कर पहले उनकी आरती उतारतीं, मधुर जलपान करवातीं। जलपान के साथ-साथ ही हास्य पूर्ण वातावरण में नाच-गान के हल्के-फुल्के कार्यक्रम भी चलते रहते।
इसके बाद छोटे- मोटे उपहार मसलन फूलों के गुलदस्ते, कलम, डाएरी दे कर हर मैडम जी को उनके व्यक्तित्व के अनुरूप ही उन्हें 'उपनाम ' जो फिल्मी मुखरे पर आधारित होते थे, से नवाजा जाता।
बहुत आनंद का क्षण हुआ करता था। जो मैडम थोड़ी गुस्सैल रहती थीं।
उन्हें " ग... ग... ग गुस्सा इतना हसीन है तो प्यार कैसा होगा ? "। वो मैडम हमारी मैथ की मैडम सुश्री " प्रणता राए " थीं और फिर शुरु हो गये ठहाकों के दौर में सबसी उँची आवाज उन्हीं मैडम की रहती।
हमारी एक अविवाहित मैडम जी हुआ करती थीं " कुमकुम सिन्हा " जिनकी फर्स्ट पोस्टिंग ही हमारे स्कूल में हुई थी।
उन्हें हमने ,
" बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है" से जब सुशोभित किया तो उनके चेहरे की छटा देखते ही बनी थी।
खैर चलें अब ना वह दिन रहे ना उम्र मगर हाँ संस्मरण शेयर करने के बहाने से उन शिक्षिकाओं की यादें फिर जीवित हो गई जिन्होंने हमारे जीवन कीआधारशिला रखी थी।
हार्दिक धन्यवाद मँच 🙏🙏🏼💐💐
सीमा वर्मा