कवितालयबद्ध कविता
हाँ, यही तो जीवन है,
हाँ, बस यही तो जीवन है,
हर रात के काले घूँघट से झलकती
प्राची की पहली किरण हैं
हाँ, यही तो जीवन है
हाँ, बस यही तो जीवन है
संक्रमण की पीडा़ है
और फिर सृजन-सुख है
विरह-वेदना का
लावा सा उगलता सा
ज्वालामुख है
और फिर मिलन-सुख है
विष-वृष्टि से दबा-ढका
अमृत-संजीवन है
हाँ, यही तो जीवन है
गगन चूमती
आशाओं की
पर्वतमालायें
कड़वे सच के
झंझावातों से
डगमग जीवन-नौकायें
विषधर के फन के साये में
पलता रहता चंदन है
हाँ, यही तो जीवन है
फूलों की मीठी सी छुअन,
काँटों की तीखी सी चुभन,
इन सबमें रमते कण-कण में
खिलता मधुवन है
सूर्यचंद्र को भी लीलता ग्रहण
और फिर स्वतः तेज उद्दीपन है
हाँ, यही तो जीवन है
हाँ, बस यही तो जीवन है
उस शेषशायी की तंद्रा,
महाकाल की चिरनिद्रा,
महारुद्र का क्षोभ-तांडव,
भस्मीभूत होता काम
कण-कण, तृण-तृण
होता निष्काम
और फिर माँ प्रकृति
और परमपिता शिव का मिलन,
"अहं बहुष्यामि" संकल्प,
निर्गुण, निराकार ब्रह्म का
और पंचतत्व-संयोजन से
उपजा नवजीवन है
काल-पाश जैसी विकट
प्रलय-तरंगों से प्रकट,
वटपत्र-शय्या में सिमट
सोया नवजात रूप नटखट
नटवर, गिरिधर, बालकिशन है
हाँ, यही तो जीवन है
कालपात्र से छलकता,
स्वातिबिंदु सा ढलकता
अनुभूतियों की सीपी में
नवजात शिशु सा पलता सा,
अद्भुत मोती में ढलता सा,
रंग-रंग की रंगोली,
पल-पल छलती सी
आँखमिचोली
करता छलिया
कालचक के संग-संग
चलता क्षण-क्षण है
हाँ, यही तो जीवन है
हाँ, बस यही तो जीवन है
द्वारा : सुधीर अधीर