कविताअतुकांत कविता
ठुकराई गई
वह बार बार
ठुकराई गई है शौहर द्वारा
घर से और अपने मन से
लेकिन वो फिर भी
वहीं खट रही है
पड़ी हुई है घर में......!
जब भी वो जाना चाहती है
अपने पति की शोहबत में
पदाघात सहती है हर बार
कभी पेट पर.....
कभी पिछवाड़े पर......
और जा गिरती है
दूर कमरे के
किसी कोने में.....!
रोती है फिर अपने कर्मों पर
सुबक सुबक कर
सारी सारी रात भर....
पड़ी रहती है
रात के अंधेरे में....!
वह क्या सोच कर
जाती होगी शौहर के पास
कि वो मुझे संस्पर्श
में लेकर मेरी बलैया लेगा....
लेकिन उसको फिर
वहीं सहना पड़ता है
पदाघात पेट पर या
पिछवाडे पर......
क्योंकि वह ठुकराई
गई है शौहर द्वारा
उसी के कर्मों से.........!!
सन्दीप चौबारा
फतेहाबाद
२८/०८/२०२०
मौलिक एवं अप्रकाशित