कविताअतुकांत कवितागीत
रे मन, पंछी बन
ले चल वहाँ
श्यामल जमुना
बहती जहाँ
अंतर्मन पावन
करे जहाँ
नीलाम्बर सा
चमकता निर्मल
अमृत जल वहाँ
पुलकित करे
तन मन
मनोहारी कदंबो
से झलके वहाँ
शीतल चंद्रमा
रे मन
ले चल मुझे,
मेरी राधा जहाँ
नाच उठे
मन- मयूरा
हो बावरा वहाँ
कदम रहे ना
ज़मीन पर जहाँ
अंबर से ऊँचे
हमारे सपने वहाँ
जहाँ मुझसी
श्यामल रात
और राधा सा
सुनहरा चंद्रमा
रे मन ले चल
मुझको वहाँ I
रे मन
क्या ढूंढें
यहाँ वहाँ
भर दे जो
आनंद से
वो ब्रज
का निधिबन
कान्हा मथुरा
में मिले कहाँ?