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कविताअतुकांत कविता
देख तेरी नीलाम्बरी काया मन पंछी बन उड़ आई आखन में चुभते शूलन सू मन ठण्डक जो छायी ललचायी भरमाई आँखे थोड़ा सकुचाई शर्माई फिर श्रद्धा भर आखन में मैं अपने नीड में सुस्ताने आई तुझ में अपना घर पाके कान्हा ये आँखे फिर थोड़ा सा भर आई