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गीली मिट्टी सी - Deepti Shukla (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

गीली मिट्टी सी

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गीली मिट्टी सी होने लगी हूँ नम
तेरे￰ प्यार की सोंधी सी सुगंध।
इस माटी की मूरत बना दूँ
पथराई आखो पे हलके से फिरा दूँ
बेचैन रूह का बिस्तर बना दूँ
या कुम्हार संग मिल ढेरो बर्तन बना दूँ l

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