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मन्ना
आज तुम्हारा मन्ना को प्यार से पुचकार के गले लगाना, हॅसना, खिलखिलाना, घर के अंदर बुला, दौड़ते हुए अपना घर-आँगन दिखाना ...ये दृश्य देखने में सबको भले ही रोचक और मनोहारी सा लगा , तुम्हें खुश देख एक पल को मन तो मेरा भी उल्लासित हुआ था पर दूसरे ही छन जैसे मेरे अंदर तक देर तक कुछ जलता सा रहा.. तुम्हारे प्रेम की चाह जो एक गाय की बछिया तक से ईर्ष्या करा बैठी गोपाल! क्या मैं कभी इस प्रेम को पाने की भागी बन सकूँगी? देर रात करवटें बदल मैं खुले आकाश कों निर्विकार तकती रही...