कवितालयबद्ध कविता
आसान होता है कितना
ये कहना कि भूल जाओ
यादों के झरोखे बंद कर
विस्मृति की भूलभुलैया में
खोकर सब कुछ भूल जाओ
मदहोशी के झूले में
आँख मूँदकर झूल जाओ
मगर क्या यह सब कुछ
इतना आसान होता है
पल-पल मन का पीछा करता
यादों का एक भूला-बिसरा जहान होता है
धरती से क्या जुदा कभी आसमान होता है ?
यादों की बुनियादों पर
खडा़ हुआ हर एक मन का
आशियान होता है
अतीत के झरोखे से
झाँकती सी रहती चंद
भूली-बिसरी सी यादें,
बीते कल की गलियों में
बिखरी-बिखरी सी कुछ
आधी-अधूरी सी मुरादें,
बेवक्त दम तोड़ते से
अधकचरे से लाचार इरादे
आने वाले कल पर लदते
बीते कल के सारे वादे
बीते कल की धरोहर या देनदारी
अगले कल के कंधों को
ढोना ही पड़ता है
संभावना का बीज पल-पल
हर आज को बोना ही पड़ता हैं
हर आज को एक धारा बन
लमहा-लमहा, बूँद-बूँद कर
सींचना ही पड़ता है
इस विरासत की गाडी़ को
चाहे या फिर अनचाहे
खींचना ही पड़ता है
एक दूजे का हाथ थामे
बढ़ते पलों का कारवाँ
हर नये आज के पहियों पर
इस कल से उस कल तक चलते
लमहों का यह चलता-फिरता आशियाँ
बस इसी का नाम तो है जिंदगी
बस इसको सच्चे अर्थों में जीना ही
बूँद-बूँद कर, घूँट-घूँट भर
पल-पल यूँ बिंदास पीना ही
इसी का नाम तो है बंदगी
बंदगी का ही दूसरा नाम तो है जिंदगी
और जिंदगी का ही दूसरा नाम तो है बंदगी
द्वारा : सुधीर अधीर