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बप्पा, तुम जल्दी चले गये - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

बप्पा, तुम जल्दी चले गये

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बप्पा, तुम जल्दी चले गये
करके अनाथ यूँ हम सबको
बप्पा, तुम जल्दी चले

शुभ मंगल का शंखनाद करता
दस दिन का ये गणपति उत्सव
शुभ चिंतन नवचेतना का
लगता था एक अद्भुत उद्भव
श्रद्धा की वंशी ने छोड़ी मधुर तरंगें
यह सब तो था एक विलक्षण सा अनुभव
पर पलक झपकते ही जैसे फिर
दिव्य भाव सब चले गये
बप्पा, तुम जल्दी चले गये

एक मोहभंग सा, सिर्फ एक छलावा सा
जाने क्यों लगता है अब ये सभी अधूरा
मन जाने क्यों लगता है खाली-खाली
हो पाया ना कोई दिव्य मनोरथ पूरा
ना बनी भावना गंगाजल
ना बन पाया मन कोई तीरथ
विश्वामित्र ना बन पाया कोई निश्चय
ना बन पाया कोई भी संकल्प भगीरथ
ठोकर सी एक लगी अचानक
और चेतना के शिखर से
हम यूँ फिसलते चले गये
बप्पा, तुम जल्दी चले गये

काया की पनहारिन तो नदिया-तट पहुँची
पर जाने क्यों मन की गागर है खाली
सावन मन के द्वारे दस्तक देकर लौट गया
अब भी सूखी मन की बगिया की हर डाली
हम मन के हाथों छले गये
बप्पा, तुम जल्दी चले गये

नवचेतन आया, ठिठका
फिर उल्टे पाँव चला गया
जाने क्यों, अपने ही हाथों
यह मन फिर से छला गया
अनछुए से हैं ये मन के तार सभी
भीतर सन्नाटा बना रहा
मन के बाहर ही दीप जला
अंदर अँधियारा घना रहा
हम चिकने से घड़े बने
माया के रंग में ढले रहे
बप्पा, तुम जल्दी चले गये

है चाल, चरित्र, चेहरा वही
बदला तो सिर्फ मुखौटा है
दस नये सीस धरकर रावण
धरती पर फिर से लौटा है
फिर आतंकित है द्रुपदसुता
स्वच्छंद हुआ है दुःशासन
फिर सत्तामदांध दुर्योधन
धृतराष्ट्र बना है फिर शासन
रही चीखती पांचाली, पर जाने क्यों
अनसुना सा करके मोहन चले गये
बप्पा, तुम जल्दी चले गये

भटक रहा भारत का अर्जुन
अब भी केशव की तलाश में
है धूल छानती युवाशक्ति
आजीविका की आस में
होती है जलप्रलय कहीं और
कहीं है प्यासी वसुंधरा
अन्नदाता,देखो, कर में
लेकर भिक्षापात्र खड़ा
हर आज को कल की ओर ढकेला
स्वर्णिम अवसर सब चले गये
बप्पा, तुम जल्दी चले गये
करके अनाथ हम सबको यूँ
बप्पा, तुम जल्दी चले गये

द्वारा : सुधीर शर्मा

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