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तिरंगी ड्रेस - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

तिरंगी ड्रेस

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*तिरंगी ड्रेस*

" ए चीनू भैया ! तुम कपड़े के तिरंगें थैले में डालते जाना। मैं कागज़ वाले बटोर लूँगी। "
" पर टिन्नी ! तू काग़ज़ों का क्या करेगी रे ? "
" अरे भैया ! ये कम से कम पैरों के नीचे तो नहीं आएँगे। अच्छे वाले झंडे हम अगले साल बेच देंगे। ये पुराने थोड़ी न होते हैं।"
स्वाधीनता दिवस की संध्या को दोनों बच्चें सड़कों से झंडे उठा रहे हैं। कुछ देशभक्त उन्हें इस श्रेष्ठ कार्य के लिए पाँच दस रुपये भी दे रहे हैं। होटलवाले इस सफ़ाई के लिए बचे खुचे नाश्ते की पुड़िया पकड़ा देते हैं।
रोज़ का काम निपटाकर बैठी माँ झंडों से कपड़ा निकाल काटते छाटते बोली, " चलो दोनों कुछ खा पी लो। "
टिन्नी जलेबी खाते हुए आश्चर्य में डूबी देख रही है, " माँ ! आखिर तुम क्या बना रही हो ? "
" तुम्हारे पहनने के लिए फ्रॉक व कुर्ता, समझे कुछ। "
चुन्नू खुश हो जाता है , "अरे वाह ! हमारे देश का झंडा हम पहनेंगे। मैं खूब पढ़ कर सिपाही बनूँगा।"
" हाँ भैया, " हम भी झंडा फहराएंगे, उन्हें इस तरह फेकेंगे नहीं। बोलो जयहिंद। "
स्वरचित
सरला मेहता
इंदौर

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

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