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" रंग-बिरंगे अनुभव '💐💐 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीसंस्मरण

" रंग-बिरंगे अनुभव '💐💐

  • 298
  • 17 Min Read

स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर निजी संस्मरण
#शीर्षक
"रंग-बिरंगे अनुभव"
मेरे पूज्यनीय पिताजी जिनकी पहचान आज भी महान् स्वतंत्रता सेनानी के रूप में है। वे अपनी माता-पिता की पाँच संतान में बचे एकमात्र पुत्र उनकी आंखों का तारा हुआ करते थे।

उनके पिताजी अर्थात मेरे दादाजी प्राइवेट टीचर थे। वे घर-घर जा कर बच्चियों को शिक्षा प्रदान करते यही उनकी आजीविका का साधन था। उससे प्राप्त धनराशि से उन्होंने अपनी बची हुई एक संतान, हमारे पिताजी का लालन-पालन उन्होंने बहुत अरमान और शौक़ से किया था।

मेरे पिताजी ने ग्रैजुएशन बिहार विश्वविद्यालय से किया तथा बाद के अपने जेल प्रवास के दिनों में किए अध्ययन से उन्होंने हिंदी एवं राजनीति शास्त्र में मास्टर्स की डिग्री पटना विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी।

वे देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत थे उनका कोमल हृदय पढ़ते समय ही भारत माता की स्वतंत्रता के सपने देखा करता।
विधि का विधान देखें उनका विवाह उनकी रुचि के ठीक विपरीत स्वतंत्रता पूर्व अंग्रेजी राज के थानेदार हमारे नाना जी की पांचवीं संतान 'सावित्री देवी' उर्फ हमारी माताजी से, बहुत ही सादे ढ़ंग से पिताजी की इच्छानुसार एक मंदिर में संपन्न हुआ।

लिहाजा इस दृष्टिकोण से हमारे घर में दो विपरीत विचारधाराओं का संगम हुआ करता था।
मेरी माँ बहुत ही मितभाषी , संयमी एवं गम खाने वाली महिला थीं। एवं उस जमाने की सांतवी कक्षा पास थीं। जब लड़कियोंको पढ़ाना निहायत अनावश्यक माना जाता था।
कदाचित उनके इन्हीं गुणों पर रीझ कर दादाजी ने उन्हें बहु बनाना स्वीकार किया होगा।
यह बात सन् १९४० की है। उन दिनों पिताजी बिहार के दरभंगा जिले के सरकारी विधालय में शिक्षक के पद पर कार्यरत थे।

जब सन् १९४२ के " अंग्रेजों भारत छोड़ो " एवं "जेल भरो अभियान" के तहत उन्होंने अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। तथा देश की पुकार पर जेल चले गए थे।
तब माताजी को भी सपरिवार सब छोड़ कर दादाजी के साथ गाँव वाले घर 'चकशिकारपुर ' जाना पड़ा था।

बहरहाल दिन कटने के लिए होते हैं। किसी तरह वे कष्टकारी दिन भी कट ही गये।
बाद के दिनों में मेरे पिताजी पटना विश्वविद्यालय में हिंदी के वरिष्ट प्राध्यापक के पद पर काम करते हुये सेवानिवृत्त हुए।

उनदिनों भी मेरी माता जी का भरसक प्रयास रहता घर में सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाए रखने का।
पिताजी को सदैव प्रसन्न रखने के लिए वे काफी दिनों तक चरखा, कतली बुनती रही थीं।
और हम सब भाई बहनों को भी ऐसा करने हेतू प्रेरित करतीं। जिसमें बाद में बेटे तो कट लेते पर हम बेटिया ना कट पाती थीं।

हमारे घर में हर वर्ष १५ अगस्त और २६ जनवरी का दिन बहुत धूमधाम और उत्साह से मनाया जाता था।
दिन अहले सुबह पांच बजे हम सब भाई- बहन उठ, स्नानादि से निवृत हो जाते। फिर घर का बागीचा जो सदैव ही फूल पत्ते से सजा रहता था।
उसमें खाली जगह देख कर माताजी आंटे से चौक पूर देतीं।
जिसके आगे पिताजी घर में ही सिले झंडे को शान से फहराया करते।
और हम सब सात भाई -बहनों की फौज उन्हें बारी-बारी से सलामी देती थी।

तत्पश्चात पिताजी हरमोनियम बजाते और हम सब सुर लगाते। जिसकी प्रैक्टिस दो दिन पहले से की जा रही होती थी...
" वन्दे मातरम् सुजलाम् सुफलाम् शस्य श्यामलम् " ,
"जन गण मन अधिनायक "
फिर माताजी के हांथों बने लड्डू के चूरमे और बुंदिया वाले प्रसाद का वितरण खुद उन्हीं के कर कमलों द्वारा होता।

अफसोस है, उन दिनों डिजिटल कैमरे तो छोड़ें तस्वीरें खींचने का ही चलन नहीं हुआ करता था।
पिताजी की यह तस्वीर भी बाद के दिनों की है जब वे परिवार समेत देश भ्रमण पर निकलते।
इस सारे प्रकरण के एक ही कष्टकारी प्रसंग जो मुझे याद है , वह २६ जनवरी की कड़कड़ाती ठंड में सुबह -सुबह स्नान करना 😊😊 💐💐।

सीमा वर्मा / सुखद अनुभूति
पटना ( बिहार )

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Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Dhanywaad ahpko

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

साधुवाद आपको 👌👌

दादी की परी
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