कवितालयबद्ध कविता
पंख होते हुए भी,उड़ नही सकती
दिल गगन की पनाह, मैं पाऊ कैसे
बन्धनों की जंजीरों ने,बाँध रखा मुझे
कोई बताये चाह कर ,उड़ जाऊ कैसे
आकाश प्रिय लगता है, प्रियतम की तरह
प्रियतम से कहो मजबूर हु,मैं आऊ कैसे
बहुत कुछ कहना है मुझे,सुनने की चाहत में
मजबूर हु मैं इस कैद में,सुनु और सुनाऊ कैसे
कोई मेरी हसरतो को,समझ पायेगा क्या कभी
चाहत है फिर भी प्रियतम से,दिल लगाऊ कैसे
स्वरचित-संदीप शिखर मिश्रा। वाराणसी(U. P)