कविताअतुकांत कविता
ये उदास -उदास सी आँखे
कभी चंचल -चपल मृगनयनी समान थीं
गहराई के बादलों सेआज घिरी हुई
कल तक तो प्रसन्नता से भरी हुई थीं
टूटे ख़्वाबों का बोझ तले सिसकती हुई
कल तक जो सुनहरी आभा से सराबोर थीं
उन्हें इनकी उदासी की आहट नही हुई
कल जिन्हें कहानियां इनकी जुबानी याद थीं
एक नीरसता भर झलकती है इनमें
जो इंद्रधनुष के नवरंग समेटे रहती थीं
अब बुझी -बुझी जान पड़ती है
कल तक जिनमें ख़ुमारी सी छाई रहती थी
क्या कुछ हुआ है इन्हें ,क्यों तन्हा नीर बहाती है
कल तक जो हँसी के लिए जानी जाती थीं
~सोभित ठाकरे