कविताअन्य
चित
#शीर्षकः
" तुम-बिन "
कंही बीत न जाए सब तीज-त्योहार
अब आ भी जाओ, मेरे सामने तुम
कब तक सपनों में रहूँ ढ़ूढ़ती तुम्हें?
आ गया रंगीला-हरे सावन का मौसम
अब यूं ना मुझे तरसाओ तुम, आ गये
सब के पिया रह गई एक अकेली मैं
माथे पर बिंदिया की चमक, हांथों में
कंगना की खन-खन। तरसे मेरा मन ।
लोग कहें मैं हो गई बाबरी, रातों में तारों
को गिन । रोक-रोक के बाट-बटोही
पूंछू कर, कब आएंगे मेरे सांवरिया ?
मिटेगी कब नैनो की प्यास ?
बैठी हूँ , बस आस लगाए बीत ना जाए
सब तीज-त्योहार ।
स्वरचित / सीमा वर्मा