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" प्रवासी बहु " 💐💐 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

" प्रवासी बहु " 💐💐

  • 203
  • 17 Min Read

#शीर्षकः
" प्रवासी-बहु"
मुम्बई के उपनगर थाणे की छोटी सोसायटी 'वृजबासी' के छोटे से फ्लैट में उमाकांत अपनी पत्नी रजनी के साथ रह रहा है। वह लखनऊ के पास किसी छोटे से कस्बे का है।

वह अपने घर का बड़ा बेटा था बल्कि घर का कर्ता-धर्ता वही था। पैसे कमाने की धुन में ही मुम्बई आया था। योंकि रजनी की तनिक भी इच्छा नहीं थी।

कहा भी था,
" आपकी नौकरी आप चले जाओ , हम नहीं जाएँगे़ अम्मा-बाऊजी को छोड़ कर " उनकी सेवा रजनी ने पिछले पन्द्रह सालों से दिन-रात एक कर के की है।

उमाकांत ने अंग्रेजी में मास्टर्स किया है। मुम्बई आ प्राइवेट सेक्टर में काम करते हुए उसे पांच साल से ज्यादा हो गये हैं। तन्ख्वाह बहुत ज्यादा तो नहीं पर गुजर-बसर करने लायक कम भी नहीं।

उसके इर्द-गिर्द रहने वालों में से किसी ने भी उसे तो कभी किसी बात की शिकायत करते नहीं सुना है।
हाँ उसकी पत्नी रजनी को हर वक्त जरूर घर की याद सताती रहती है ,
"कहाँ यह दो छोटे कमरों वाली छोटी सी खोली नुमा फ्लैट और कहाँ अपने कस्बे वाला बड़ा सा मकान? "।

उसे अपनी सास-स्वसुर की परवाह भी हमेशा लगी रहती है। छोटा देवर सतीश करीब अठ्ठाइस-तीस साल का है। जिसकी पत्नी हेमा हर वक्त उसे 'दीदी', 'दीदी ' कह कर उसके पीछे-पीछे लगी रहती।
रजनी निसंतान है। लेकिन हेमा ने अपने बच्चे को उसकी गोद दे कर उसे कभी इसकी कमी नहीं खलने दी है। नन्हा मुनुआ तो जैसे उसकी दुनिया ही था।

रजनी का दिल हर समय बस उन्हीं सब के बीच लगा रहता है। जिसका जिक्र वह बराबर उमाकांत से करती रहती है। हमेशा फोन करके मुनुआ के हालचाल लेती रहती है।
जब कभी अम्मा और हेमा से बात होती है , तो सुबुक-सुबुक कर रोने लगती है।

एक दिन रात में उसने उमाकांत से सीधा सवाल किया,
" हम यहाँ क्यों पड़े हुए हैं ? क्यों नहीं घर वापस चलते हैं? "
रजनी के दिल- दिमाग और रूह में घर और परिवार की ही मनोहर छवि बसी रहती।
" बात तो तुम्हारी ठीक है। रोजी के साधन हो तो घर कौन छोड़ता है?
लेकिन वहाँ कमाई की इतनी गुंजाइश नहीं है '।
" और यहाँ है ? ... खर्चे देखो यहां के ! " रजनी आक्रोश से भरी हुई थी।
" आखिर किसी तरह खर्चे में से निकाल कर दस-बीस हजार तो घर भेज ही देते हैं... ना किसलिए ...इसीलिए ही ना कि घरवाले सुख चैन से रहें "।
" वरना यहाँ क्या रखा है अपना रजनी ? अंजानी जगह, अंजाने लोग "
उमाकांत उसे समझाते हुए बोला।
" लेकिन तुम वहाँ क्यों जाना चाहती हो? " आराम से रहो घूमो -फिरो "
रजनी बोल उठी,
" बस यों ही वहाँ मैं बरसों-बरस रही , अम्मा-बाबा की सेवा की। "
" दुल्हन बनी हुई हेमा को छोटी बहन जान डोली से उतारा है "।
" हेमा ने भी तो बिना भेदभाव के मुनुआ को मेरी गोद में डाल दिया था। "
" कैसे भूल जाऊँ! वो सब ? "।

तभी शायद एक दिन ,
"बिल्ली के भाग से छींका फूटा"।
हुआ यों,
कि उमाकांत को नौकरी से निकाल दिया गया।
या यों कंहे उसने खुद ही नौकरी छोड़ दी।
इस वाकये से वह असंतुष्ट तो है पर दुखी नहीं।
इधर पत्नी रजनी मन ही मन खुश तो है पर जाहिर नहीं करती।

हैरान हो कर उमाकांत से पूछ बैठी ,
" लेकिन हुआ क्या? "
बहुत खोद-विनोद किया तो उमाकान्त सहज भाव से बोला ,
"अब तुम्हें क्या बताए, नौकरी क्यों छोड़ी?
असल में हमारे भीतर ही नुक्स है "।
" बस इसी से नौकरी छोड़ देनी पड़ी "।
" लेकिन क्या नुक्स है मुझे भी तो पता चले? " मनुहार करती रजनी उमाकांत से बोली ,
" सबसे बड़ा नुक्स है मेरी ईमानदारी हम जो भी करते हैं, ईमानदारी से बेईमानी नहीं करते हैं ना "।
"अब आफिस में बड़ा बाबू हैं, तो सबकी बस यही दिक्कत है। उनकी गलत-सलत फाइल बढती आगे बढ़ती ही नहीं है बस..."।
फिर सोच कर बोला,
"मेरा तरीका सबसे अलग है। रजनी हम अपने काम का तरीका नहीं बदल सकते... और ना ऑफिस के लोग अपना तरीका "
" बस बहुत हो गया अब, नौकरी नहीं करनी चलो घर चलते हैं। "
"वंही चल कर नयी तरीके से मिट्टी से सोना बनाएगें "।
" परिवार के साथ मिलजुल कर रहेंगें। तुम खुश, मैं खुश और अम्मा- बाबा भी खुश ।

सीमा वर्मा/ स्वरचित
पटना ( बिहार )

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Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Wah

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

सुंदर लेखन

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