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"कमली-बाई " 💐💐 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

"कमली-बाई " 💐💐

  • 230
  • 8 Min Read

#शीर्षकः
" कमली-बाई "
" क्यों कमली इतनी जल्दी निकल चली, घर के सारे काम कौन करेगा? तेरी १०२ वाली मेमसाब ?"
" फिर टोक दी पीछे से माँ ,तुम बाज नहीं आओगी उन्हें क्यों कोस रही हो ? उनके यहाँ मेहमान आए हैं, इसलिए जल्दी बुलाया है "।
"क्यों... क्यों बाज आउं मैं ? एक तो तेरे बच्चे संभालू उपर से खाना भी पकाउं और घर भी...?"।
" बस हो गई शुरु...उफ्फ! मेरे ही पैसे पर... बोलती चुप हो गई।
लेकिन तब तक तीर कमान से छूट चुका था, फिर तो शुरु हुई चख-चख में पहली की दो लोकल निकल गई।
"आज फिर लेट हो गई जाउंगी "
टिफिन डब्बे में रात की बची हुई बासी रोटी और अचार डाल कर बाहर निकल गयी।
" उफ्फ्फ ये तो १०२ नम्बर क्वार्टर पंहुचते हुए नौ बज गये हैं, अच्छी खासी डाँट मिलेगी आज तो " सोच कर सिहर गई।
" ओ... हो... आ गई महारानी यही तेरी जल्दी है ?"।
१०२ वाली मेमसाब भन्ना कर,
" इससे अच्छा तो होता आज तू घर ही बैठ जाती"
दो बूंद आंसू के ढ़लक गये। चुपचाप सिंक में पड़े बर्तनों को धोने में लग गई।
मेमसाब ने चिढ़ से, " नाश्ता तो क्या आज चाय तक को नहीं पूछा है,
अन्य दिनों से ज्यादा ही ढ़ेर सारे काम भी बता दिए "।
" ओह...एक बज गये, अंतड़ी भूख से फट रही है"।
फिर भी निकाले जाने के भय से हाँथ पूर्ववत चलते रहे।
" करीब एक बजे फुर्सत पा बाहर चबूतरे पर टिफिन खोल कर बैठी रोटी तोड़ने लगी " ।
कि गली वाली पगली मुँह से गों-गों की आवाज निकालती सामने आ खड़ी हुई।
" इच्छा हुई दुत्कार दूँ ! लेकिन एक तो तीखी धूप , फिर भूख के चलते उसकी धंसी हुई तेजहीन आंख ... " कमलीबाई झेल नहीं पाई।
उसके फैले हुए हाँथ पर टिफिन उलट कर होठों में ही बुदबुदाई ,
" हे भगवान् घर से भूखी निकली हूँ, देखूँ कब अन्न का दाना नसीब होता है? "
खाली टिफिन में नल के पानी से पेट भर कर
" चलूँ ,१०९ वाली की डाँट खाने " सोच जाने के लिए उठ गई ।

स्वरचित / सीमा वर्मा

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Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

सम्वेदना से पूर्ण

Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Samwedna se paripurn

दादी की परी
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