कवितालयबद्ध कविता
राधा की पायल बोल उठी
मन के भेदों को खोल उठी
आकर मोहन की मुरली में
अद्भुत सा रस घोल उठी
मोहन-मन के वृंदावन में
शीतल बयार सी बह गई
चैतन्यपुरुष की चेतना
यूँ भौचक्की सी रह गई
यूँ ढाई अक्षर में समेटकर
कौन कब क्या बोल गया
जगद्गुरु योगीश्वर के
मन का पद्मासन डोल गया
माया ने उसको भरमाया?
या वह खुद माया बनकर आया?
वह कृष्ण जटिल सा प्रश्न
बनकर ऐसा जनमानस पर छाया
उस मायापति की यह माया
उस परमसत्य से प्रकटी छाया
शुक, शारद, सनक या नारद
कोई अब तक समझ न पाया
द्वारा : सुधीर अधीर