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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष आलेख।
कान्हा रे थोड़ा प्यार दे चरणों में बैठा कर तार दे... 💐💐
मोर मुकुट धारी श्री कृष्ण आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने द्वापर युग में थे। भगवान् कृष्ण का जन्म कारागार में मामा द्वारा उत्पन्न विपरीत परिस्थितियों मेंं हुआ था। जिनके जन्म के साथ ही सभी द्वार खुल गए माता देवकी एवं पिता वासुदेव के जँजीर टूट गए। जिसका सीधा सम्बंध हम तात्कालीन समाज में व्याप्त जात- पात तथा अन्य फैली तमाम प्रकार की कुव्यवस्थाओं के टूटने से जोड़ कर देख सकते हैं। देवकी की गोदी और यशोदा के ललना श्री कन्हैया लाल की जय।
श्रीकृष्ण ने बाल्यकाल से ही प्रेम का बहुत शोर मचाया , मुरली की धुन पर गोपियों को नचाने वाले श्रीकृष्ण गोपालक हैं।
जरा गोपियों की धृष्टता तो देखें उन्हें माखन चोर बना दिया।
पुनः किशोरावस्था में मामा कँस का वध कर निर्बल साधु और संतो के रक्षक बन गये। कालांतर में वे विश्व के लिए अमृत और पापियों के लिए विष के रूप में हमारे समक्ष आते हैं।
समस्त चेतना के चिंतक श्री योगेश्वर सनातन कृष्ण हम सबों के अन्दर अपने विविध सूक्ष्म रूप यथा ...
प्रेमासिक्त प्रेमी , बाल सखा , सच्चे मित्र , आदर्श गुरु एवं अन्य नाना रूप में व्याप्त हैं। आवश्यकता है, हमें सिर्फ अनुभवों के द्वारा उन्हें महसूस करने की।
आज भी सच्ची मित्रता के उदाहरण स्वरूप कृष्ण और सुदामा का उल्लेख किया जाता है।
पुनः आदर्श गुरु के रूप में महाभारत के युद्ध शुरू होने के पूर्व ,अर्जुन के समक्ष अपने विराट स्वरूप से अवगत कराते हुए। उसके मन में उत्पन्न अनंतरद्वदों का नाश करते हुए प्रकट होते हैं ।
कृष्ण के सखा-रूप के दर्शन हमें महाभारत युद्ध के समाप्त होने के उपरांत दिख पड़ता है। जब द्रौपदी खुद को इसका कारण मानते हुए ग्लानि भाव में डूब जाती है। तब श्रीकृष्ण ही उसे इस भाव से उबारते हैं यह कहते हुए कि,
" युद्ध तो पहले से सुनिश्चित था तुम तो निमित्त मात्र बनी इसके लिए"।
अन्त में यह कहना चाहूंगी , कि श्री कृष्ण अपरिभाषित हैं। अगर ज्ञान चक्षुः से देखें तो रहस्य ।
और मन की आंखों से देखे तो, " प्रेम का गागर प्रीति के सागर"।
ऐसे श्री वृन्दावन वन बिहारी, यशोदा नन्दन, कृष्ण मुरारी की जय हो 💐💐💐💐🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏
सीमा वर्मा /मौलिक