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कच्चे रास्ते (भाग १६ ) साप्ताहिक धारावाहिक - Ashish Dalal (Sahitya Arpan)

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कच्चे रास्ते (भाग १६ ) साप्ताहिक धारावाहिक

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भाग – १६ (कच्चे रास्ते)

समीर, मेरा विश्वास करो ...मैं चाहती हूं लेकिन सिर्फ दोस्त की तरह । मेरे मन में तुम्हारे लिए वो वाली फीलिंग कभी आई ही नहीं जो अनय के लिए है । मुझे अगर थोड़ा सा भी अहसास होता कि तुम किस तरह की भावनाओं के साथ मेरे साथ आगे बढ़ रहे हो तो मैं तुम्हें वहीं रोक देती. मैं अनय से प्यार करती हूं और उसे ही अपने जीवनसाथी के रूप में देखना चाहती हूं ।”

काव्या की अधूरी बात सुनकर पहले तो अनय चौंक गया था लेकिन जैसे ही उसने अपनी बात पूरी की तो वो समझ गया कि काव्या काफी सोच विचार कर खुद ही इस मसले को सुलझाना चाहती है और इसी के लिए वो यहाँ आई है ।

समीर का चेहरा फीका पड़ चुका था । वो अभी भी एक भ्रम में ही जीना चाहता था लेकिन अभी काव्या ने साफ शब्दों में जब अनय को अपना जीवनसाथी मानने की बात कही तो उसे लगा जैसे किसी ने उसके दिल में छुरी भोंक दी । उसने उदास होकर काव्या से पूछा , “अनय में ऐसा तो क्या है जो मुझमें नहीं है ?”

समीर के सवाल का कोई जवाब नहीं था काव्या के पास पर फिर भी वो भावनाओं में बहकर बोलने लगी, “पता नहीं... पर उसे देखती हूँ तो लगता है जैसे मेरी साँसों में उसकी
साँसों की महक समा गई हो ...जैसे दिल के साज पर किसी संगीतकार ने कोई प्यारा सा संगीत छेड़ दिया हो ...”

काव्या के साथ साथ वो भी अपनी भावनाओं पर काबू नहीं कर सका और अचानक से समीर बोलने लगा, “जैसे दिल में दहकती आग को प्यार की ठण्डक का साया मिल गया हो... जैसे शरीर का रोम रोम प्यार के रोमांच से भीग गया हो ...”

काव्या अब समीर को चौंककर देखे जा रही थी । तभी समीर ने आगे बढ़कर उसकी दोनों बाहें थाम ली और बोला, “काव्या तुम मुझे चाहो या ना चाहो पर मेरा विश्वास करो तुम ही मेरा पहला और आखरी प्यार हो ।”

काव्या ने धीरे से समीर की पकड़ से अपने आपको छुड़ाया और उससे दूर होकर बोली, “समीर । वास्तविकता को स्वीकार करो । मैं तुम्हारे लिए नहीं बनी हूँ क्योंकि मेरा दिल सिर्फ और सिर्फ अनय के लिए ही धड़कता है।”

काव्या की बात सुनकर अचानक ही समीर के चेहरे के भाव बदल गए । वो रहस्यमयी आवाज में बोला, “और अनय का दिल ही धड़कना बंद हो जाए तो ?”

काव्या को एक पल के लिए समीर की कही बात समझ नहीं आई । लेकिन जब उसने समीर के चेहरे को ध्यान से नोटिस किया तो उसे कुछ अजीब सी अनुभूति होने लगी । उसने घबराते हुए समीर से पूछा, “तुम कहना क्या चाहते हो समीर ?”

काव्या को घबराते हुए देखकर समीर जोर जोर से हँसने लगा और कहने लगा, “तुम मेरी नहीं हो सकती तो किसी की भी नहीं हो सकती । तुम मुझे छोड़कर जिस किसी की भी होना चाहोगी उसे अपने रास्ते से हटा दूँगा ।”

समीर का बदला सा रूप देखकर काव्या और ज्यादा घबरा गई । उसने समीर का हाथ पकड़कर कहा, “समीर, तुम इस वक्त होश में नहीं हो । चलो यहाँ से।”

इस पर समीर इतनी जोर से काव्या का हाथ झटका कि वो अपना बैलेंस खोकर आगे की तरफ गिर पड़ी । उसने फुर्ती से अपने दोनों हाथ जमीन पर टेक दिए थे जिससे उसका सिर पत्थर से टकराने से बच गया लेकिन अपने इस प्रयास में उसके हथेली की चमड़ी छिल गई और वो दर्द से चीख उठी । ये सबकुछ आँख के एक पलकारें में हो गया । अनय फौरन टॉकीज की टूटी हुई दीवार के पीछे से बाहर निकल आया और काव्या को सहारा देकर सम्हालकर खड़े होने में उसकी मदद की ।

काव्याअनय को अचानक से यहाँ पाकर हैरान थी । समीर की आँखों में अब खून उतर रहा था । अनय को देखकर उसने अपने दोनों हाथ की मुट्ठियाँ भींच ली और आगे बढ़कर अनय के चेहरे पर जोर का एक मुक्का मार दिया । ये सब इतनी जल्दी हुआ कि अनय अपना बचाव नहीं कर पाया । काव्या ने चीखकर समीर को रोकना चाहा लेकिन अनय अभी सम्हल पाता तभी उसने एक और मुक्का उसकी छाती पर मारा । इतनी देर में काव्या उन दोनों के बीच आकर खड़ी हो गई और चीखते हुए समीर से बोली, “अब मारो अनय को ।”

काव्या के इस व्यवहार पर समीर गुस्से से चीख उठा, “काव्या, मेरे सामने से हट जाओ। अनय आज एक फैसला करने यहाँ आया था तो वो फैसला मैं ही कर देता हूँ ।”

इस पर काव्या ने अपने पर्स से अपना मोबाइल निकालते हुए उसे धमकाते हुए बोली, “समीर, बंद करो ये सब वरना मैं पुलिस को बुला लूंगी ।”

काव्या की इस बात पर समीर फिर जोर से हँसा और बोला, “तुम्हारे बिना वैसे भी जिन्दगी जीने जैसी नहीं रही । क्या फर्क पड़ता है घर में रहकर अकेले घुट घुटकर मरुँ या जेल की सलाखों के पीछे रहकर।”

काव्या समझ नहीं पा रही थी कि समीर को कैसे रोके ? तभी अनय ने आगे बढ़कर समीर का हाथ पकड़ा और अपना दायाँ पैर घुटने से मोड़कर समीर के पेट पर जोर का प्रहार किया । अनय के अचानक इस प्रहार से समीर अपने आपको सम्हाल नहीं पाया और अपना पेट पकड़कर दर्द से चीखते हुए जमीन पर घुटनों के बल बैठ गया ।

समीर का चेहरा नीचे की तरफ झुका हुआ था और वो दर्द के साथ गहरी साँसे ले रहा था । तभी उसने अपना चेहरा ऊपर की तरफ किया और अनय की तरफ देखकर जोर से चिल्लाया, “अनय मैं तुझे जिन्दा नहीं छोडूंगा ।”

काव्या समीर का ऐसा रूप पहली बार देख रही थी । वो इस सारे घटनाक्रम से बहुत डर गई थी । वो अनय की बगल में जाकर उसकी बाँह पकड़कर खड़ी हो गई । समीर के मुँह से अपने लिए गाली सुनकर काव्या का हाथ छुड़ाकर अनय ने अपने फिर से अपने पैर से समीर के पेट पर प्रहार किया । समीर जमीन पर पीछे की तरफ गिर पड़ा ।

काव्या ने आगे बढ़कर फिर से अनय का हाथ पकड़ लिया और डरते हुए बोली, “अनय. ऐसा मत करो प्लीज ।”

अनय ने काव्या की पकड़ से अपना हाथ छुड़ाकर आगे बढ़कर समीर पर फिर से प्रहार करना चाहा लेकिन काव्या ने अपने दोनों हाथों से उसकी बाँह पकड़कर उसे आगे बढ़ने से रोक दिया ।

अनय ने गुस्से से काव्या को अपने से अलग करना चाहा लेकिन काव्या उसे छोड़ नहीं रही थी । अनय ने गुस्से से कहा, “काव्या, अब इस मसले को यहीं हल कर लेने दो ।”
काव्या भी डर और गुस्से से चीख उठी , “हाँ, मार डालो दोनों एक दूसरे को । मेरे बारें में सोचा भी है ...तुम्हें कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा ..”

काव्या की डरभरी काँपती हुई आवाज सुनकर अनय का सारा गुस्सा उतर गया और उसका ध्यान समीर से हटकर अब काव्या पर आ गया । उसने अपने दोनों हाथों की हथेलियों से उसके गालों को छुआ और बोला, “कुछ नहीं होगा मुझे लेकिन समीर अब गाँधीगिरी से नही बल्कि डॉन वाले तरीके से ही समझ पायेगा।”

काव्या की आवाज अब भी काँप रही थी, “नहीं अनय. नो वायोलेंस प्लीज ।”

समीर अब तक अपने आपको सम्हालता हुआ लड़खड़ाते हुए खड़ा हो गया था । अनय और काव्या दोनों ने ही उसे नोटिस नहीं किया । अनय अब भी काव्या को समझा रहा था और काव्या अपनी नजरें नीची किए हुए उसकी बातें सुन रही थी । अनय की पीठ समीर की तरफ थी । तभी समीर ने आगे बढ़कर अनय के कंधे पर हाथ रखा तो अनय फुर्ती से पलट गया । समीर ने उसकी तरफ देखकर अपने दोनों हाथ जोड़ लिए और टूटे हुए शब्दों में बोलने लगा, “तुम चाहते हो ना कि मैं काव्या को भुला दूँ ....भुला दूँगा लेकिन इसकी कीमत लूँगा....”

अनय को अचानक से समीर के चेहरे के बदले हुए से भाव समझ नहीं आये । कुछ देर पहले उसे जान से मार डालने की धमकी देने वाला समीर अचानक से समझौता कैसे करने लगा ? उसने समीर के चेहरे को ध्यान से देखा । उसकी आँखें लाल हुई जा रही थी । अनय ने अपने दोनों हाथ समीर के कंधे पर रखे और समीर को समझाते हुए कहने लगा,
“समीर, तुम अपने होश में नहीं हो । इस बारें में हम फिर कभी बात करेंगे । चलो, मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देता हूँ।”

अनय की बात सुनकर समीर ने हँसने की कोशिश की लेकिन पेट में हो रहे दर्द की वजह से हो हँस न सका । वो बोला, “नहीं । आज इस पार या उस पार ।”

काव्या घबराकर अनय के पीछे कुछ दूरी पर खड़ी हुई थी । वो अभी भी डरी हुई सी थी ।

तभी अनय ने समीर की बात सुनकर उससे पूछा, “क्या चाहते हो तुम आखिर मुझसे ?”

इस पर समीर ने अनय को एक तरफ हल्के से धक्का दिया और काव्या की तरफ बढ़कर कहने लगा, “तुमसे कुछ नहीं चाहिए मुझे । मैं काव्या के होंठो को को तुम्हारे सामने चूमना चाहता हूँ और फिर...”

शेष भाग अगले हफ्ते

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दादी की परी
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