लेखआलेख
रक्षाबंधन की अनेकानेक शुभकामनाएं. भ्रातृभगिनीस्नेह की अद्भुत अनुभूतियों से लिपटे इस रक्षासूत्र का स्मरण ही मन को परमानंद से रससिक्त कर देता है. इस विलक्षण परंपरा से जुडी़ कुछ कथायें आप सबके साथ साझा कर रहा हूँ. आइये, देखते हैं कि किस-किसने किस-किसको रक्षासूत्र से बाँधा.
प्रह्लाद के पौत्र महाप्रतापी दैत्यराज बलि ने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त की तो देवमाता अदिति ने पयोव्रत के फल से भगवान के वामन रूप को पुत्र रूप में प्राप्त किया. वामन ने राजा बलि से तीन पग भूमि दान माँगी. शुक्राचार्य ने भगवान को पहचानकर बलि को सचेत किया किंतु उस परमदानी ने परिणाम की परवाह न करते हुए दान के लिए संकल्प किया जिसे रोकने के लिए शुक्राचार्य जलकलश की टोंटी में सूक्ष्म रूप धरकर बैठ गये. वामन ने कुशा की नोक से उसे दूर किया तो शुक्राचार्य एक नेत्र खो बैठे.
भगवान ने विराट बनकर दो पग में ही तीन लोक नाप लिए तो बलि ने तीसरे पग के लिए अपना सिर प्रस्तुत करते हुए अपने अहं का दान करके अपने दान को पूर्ण किया. भगवान ने उसे सुतल लोक का अधिपति बनाकर एक और वर माँगने को कहा.
बलि ने माँगा कि अपने महल में आते-जाते मुझे आपके दर्शन हों. भगवान उसके द्वारपाल बन गये. उधर लक्ष्मी जी को नारद जी ने सब समाचार सुनाया तो उसने आकर बलि को रक्षासूत्र बाँधकर भगवान को द्वारपाल के दायित्व से मुक्त करवाया. भाई हो तो ऐसा.
दूसरी कथा कृष्ण से संबद्ध है. हरि के द्वारपाल जय और विजय सनकादि मुनियों के शाप से तीन जन्म तक राक्षस बने. पहले हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु बनकर वराह और नृसिंह भगवान के हाथों मुक्ति पायी. फिर रावण और कुंभकर्ण बनकर राम के हाथों देहत्याग किया और फिर शिशुपाल और दंतवक्र बनकर कृष्ण के हाथों मुक्ति पायी. ये दोनों ही कृष्ण की बुआओं के पुत्र थे. शिशुपाल के जन्म के समय तीन नेत्र और चार भुजायें थी. ज्योतिषी ने बताया कि जिसकी गोद में आकर इस बच्चे के अतिरिक्त भुजायें और नेत्र गायब हो जायेंगे, उसी के द्वारा इसका वध होगा. कृष्ण के हाथों में आते ही ऐसा हो गया तो उन्होंने अपनी बुआ को वचन दिया कि मैं इसके सौ अपराध क्षमा कर दूँगा.
पांडवों के राजसूय यज्ञ में कृष्ण को अग्रपूजा के लिए चुना गया तो शिशुपाल आवेश में आकर उनके लिए अपमानजनक शब्द बोलने लगा. भगवान ने सौ से अधिक गिनती होते ही अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काटकर उसे अपने धाम भेज दिया. ऐसा करते हुए कृष्ण के हाथ से खून बहता देखकर द्रौपदी ने अपनी साडी़ का एक टुकडा़ फाड़कर उनके हाथ पर बाँध दिया. भगवान ने उसे रक्षासूत्र मानकर उसकी आजीवन रक्षा करने का वचन दिया और चीरहरण के समय इसके बदले एक अनंत वस्त्र द्वारा बहन की लज्जा की रक्षा की. भाई हो तो ऐसा.
कहते हैं कि सिकंदर की पत्नी ने पौरूस को राखी बाँधकर अपने पति के लिए जीवनदान माँगा था. इसीलिए अवसर मिलने पर भी पौरुस ने उसका वध नहीं किया. भाई हो तो ऐसा.
एक और कहानी मैंने बचपन में अपनी हिंदी की पाठ्यपुस्तक में पढी़ थी, " राखी की मर्यादा ". यद्यपि इतिहास में इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता. महाराणा प्रताप के दादा राणा सांगा ने बाबर के साथ बहुत वीरतापूर्वक युद्ध किया और वीरगति प्राप्त की. कालांतर में उनके पुत्र उदय सिंह का युद्ध बहादुर शाह के साथ हुआ. उस समय राजपूत सेना की स्थिति बहुत कमजोर थी. राजमाता कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर अपने पुत्र के लिए सहायता माँगी और हुमायूँ ने सहायता करके राखी की मर्यादा का पालन किया. भाई हो तो ऐसा.
आप सबको पुनः राखी के इस पर्व की शुभकामनाएं.
द्वारा :सुधीर अधीर