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" जाति - भेद " भाग -1💐💐
अनुजा और शाश्वत को मेडिकल कॉलेज में साथ पढ़ते हुए लगभग पाँच वर्ष बीतने को हो गये हैं। अब तो उनकी पढ़ाई खत्म होने को है।
दोनों एक ही शहर के निवासी पर कॉलेज में ऐडमिशन लेने के पहले तक एक दूसरे से बिल्कुल अंजान थे।
जैसा कि अमूमन होता है, छोटे शहरों के बच्चे अक्सर पढ़ने के लिए बाहर निकलते समय भोले -भाले और निहायत मासूम होते हैं।
ठीक उसी तरह ट्रेन में अनुजा की पहचान शाश्वत से, अकेले आने-जाने वक्त साथ होने से, ' एक से भले दो' के नाम पर शुरू हुई , उनकी जान-पहचान पहले मित्रता में बदली फिर वे दोनों घनिष्ठ होते चले गये।
साथ-साथ क्लास अटेंड करते , प्रोजेक्ट तैयार करते हुए कब एक दूसरे की ओर आकर्षित हुए हैं। खुद उन्हें भी मालूम नहीं।
छुट्टियों में जब घर जाते तो वहाँ भी उनका जी नहीं लगता। क्योंकि वहाँ तरह-तरह की पाबंदी थी। तो अगले दिन से ही वे वापस लौटने की राह देखने लगते।
अनुजा के घर मे खास कर उसके पापा इस स्थिति को देख- परख रहे हैं।
वे मन ही मन उसके विवाह की बात भी चलाने की सोच रहे हैं। जबकि इस सब से बेखबर अनुजा अपनी दुनिया में मस्त और बेखबर है।
हालांकि , शाश्वत का तो पता नहीं लेकिन अनुजा इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है। कि यह संजोग जुट पाना लगभग असंभव है। वह शाश्वत से जाति भेद और वर्ग भेद को ले कर हर वक्त आशंकित रहती है। फिर भी इन दिनों उसका स्वंय पर से नियंत्रण खोता चला जा रहा है।
इसलिए ऐसे लम्हों में वह ज्यादातर खामोश ही रहती है।
लेकिन आज तो जब शाश्वत हद की सीमा पार कर, सीधा उसके घर ही फूलों का गुलदस्ता ले कर पंहुच गया। तब अनुजा उसकी हिम्मत देख कर हैरान
हो गई ,
" ये तो खैर कहो ,आज पापा घर पर नहीं हैं , नहीं तो गजब हो जाता "।
उसके पापा शाश्वत की आर्थिक विषमता को तो एक क्षण के लिए शायद स्वीकार भी कर लें। पर जाति और सामाजिक वर्ग-भेद कभी भी बर्दाश्त नहीं करेगें।
अनु पूछ बैठी,
"ऐसे कैसे शाश्वत तुम जानते नहीं? हमारा मेल संभव नहीं ? "
"क्यों? मैं और तुम दोनों अपनी तरफ से तो बिल्कुल तैयार हैं"।
" हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं, ना कि एक दूसरे की जाति से"।
" और यह भी तो एक तरह की युवा क्रांति है ?"
" मुझे मालूम नहीं , क्रांति की बातें कॉलेज में ही अच्छी लगती हैं " अनुजा कुछ नाराज सी बिसुर कर बोल पड़ी।
" तुम्हें खूब मालूम है घर में बैठी अकेली रोती रहती हो"।
शाश्वत ने अनु के हाँथ थाम लिए।
और उसे नये सिरे से देखा, कोई बनाव- श्रृंगार नहीं।
बिल्कुल सादे वेश में बिना सजावट के ही। फिर भी कितनी स्वस्थ्य और प्रफुल्लित दिखती है।
अब अनुजा हौले से मुस्कुरा दी। शाश्वत उसे हमेशा ऐसे ही मुस्कुराते देखना चाहता है। उसने अनु की ठुड्ढी को गुलाब के फूलों से स्पर्श करते हुए उसके गोरे कपोलों को चूम लिये ।
" हटो भी" कह अनुजा ने उसे परे धकेल दिया ।
" डरपोक कंही की ! "
" क्या? ऐसा क्यों कहा ?"
" क्यों ना कँहू, है हिम्मत ? "
"तुम मेरी हिम्मत देखना चाहते हो बुद्धु कंही के बोल कर हंस दी"।
" सुनो ! " अनुजा ने अपने दोनों बाजुएं उसकी ओर बढ़ा कर तत्काल पीछे कर लिए। फिर फुसफुसाते हुए बोली ,
" मोम सा जिस्म तो मेरे पास भी है पर पत्थर सा दिल कहाँ से लाऊँ "।
" पापा मेरी चपलता पर विश्वास नहीं करेगें "
शाश्वत सब तुम्हें ही दोष देगें, मुझे बहकाने का सारा श्रेय तुम्हारे सर मढ़ कर जीना मुश्किल कर देगें तुम्हारा " ।
"अब इसे मेरी कायरता मानों या... कुछ भी , मैं तुम्हें किसी भी हाल में मुश्किल में नहीं डाल सकती "?
कहती हुई उठ कर अंदर की ओर जाने को उद्धत हुई ।
आगे बढ़ कर शाश्वत ने अनु के उठे हुए कदम रोक दिए और कहा,
" चलो कंही बाहर चलते हैं , घूम कर आते हैं।"
अनु ने घड़ी देखी , अभी पापा को आने में देर है।
फिर कुछ सोच कर शाश्वत के साथ निकल गई। बाहर जा घूम-फिर कर थोड़ी खरीदारी की, नुक्कड़ वाली चाट की मशहूर दुकान से उन दोनों ने जी भर कर चाट खाए।
तब तक शाम ढ़ल चुकी है। वापसी में बातचीत करते हुए पैदल ही चल पड़े।
बातों के सिलसिले में ही अनु ने शाश्वत से कहा,
" मुझे तुमसे कहने में अच्छा तो नहीं लग रहा लेकिन फिर भी , पापा शायद इस रिश्ते के लिये कभी हाँ नहीं कहेंगे"।
" हाँ, वो तो है अनु , पर हम सिर्फ इसी वजह से पीछे हट जाएं?"
" यह भी तो संभव नहीं। उनको कैसे भी करके हमें मनाना ही होगा".।
" पहले हमें कोई अच्छी सी जॉव लग जाए , पैकेज भले कम हो पर दोनों की जॉव एक ही शहर में लग जाए यह निश्चित करना होगा हमें "।
" फिर आपस में मिल बैठ कर बातें कर हल निकालने की कोशिश कर सकते हैं "।
" क्यों अनु मैं सही कह रहा हूँ?" ,तुम भी तो कुछ बोलो "।
कुछ भी नहीं बोली अनुजा , सिर्फ अपनी बड़ी-बड़ी पलकें झपका कर अपनी सहमति जता दी"।
परस्पर यह निश्चय कर के दोनों आश्वस्त हुए। तब तक अनुजा का घर आ गया है।
वह शाश्वत की ओर देख , विदा लेने की मुद्रा में खड़ी हो गई। कुछ क्षण रुक कर गेट खोल अंदर प्रवेश कर गई।
शाश्वत वंही रुक कर उसे तब तक देखता रहा जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई ।
उसने देखा, अंदर जाते वक्त अनुजा ने टेबल पर रखे फूल के गुलदस्ते उठा गाल से सटा लिए हैं।
क्रमशः
💐💐😊😊
सीमा वर्मा / पटना