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"घरेलू-हिंसा" - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

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"घरेलू-हिंसा"

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आलेख ...
#शीर्षक#
" घरेलू हिंसा"
सामान्य जीवन में जब सत्य और सौन्दर्य का दमन होता है, तब जन्म होता है घरेलू हिंसा का ।
हमारे पुरुष प्रधान समाज में सदियों से स्त्री को उसकी सुरक्षा के नाम पर घरों में कैद कर दिया गया है।
जिसमें वह बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक अघोषित अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर होती आई है।
यद्यपि कि अब स्थिति थोड़ी बदल चुकी है फिर भी यह बदलाव मामूली है।
परिवार और घर सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की चारदीवारी मानी जाती है। लेकिन अगर हम इसके तह में जाऐंतो यही घर शोषण की अधिकृत इकाई बन चुके हैं।
इसे दुर्भाग्य ही कहा जाना चाहिये कि इस चारदीवारी के पीछे हुए नित नये घरेलू हिंसा की शिकार हुयी कभी बेटी , बहू तो कभी पत्नियों के सपने सिसकियों के रूप में ही दम तोड़ देते हैं।
मां ,पत्नी ,बहन और बेटी के दाएरे में कैद स्त्री एक सामान्य मनुष्य भी है उसकी कुछ मानवोचित इच्छाऐं , सम्वेदनाऐं भी है इसकी परवाह किसे है?।
अगर कभी उसने इसे जाहिर कर दिया तो फिर प्रारंभ हो जाते हैं घरेलू हिंसाओं के दौर उसकी चाहत ,भावनाओं के कोई मोल नहीं?
इसके बदले उसे परिवार के उपालंभ ,शिकायतें एवंम् शारीरिक अथवा मानसिक कष्ट जो आगे जा कर हिंसा के रूप में बदल जाते हैं , ही झेलनी पड़ती है ।
साधारण शब्दों में कंहे तो स्त्री स्वातंत्र्य और स्त्री विमर्श के इतने दिन बीत जाने पर भी स्थिति बहुत संतोष जनक नहीं कही जा सकती । इच्छाओं की पूर्ति के लिए उसे अभी भी संघर्ष करना पड़ रहा है ।
यह हाल तकरीबन समाज के हर वर्ग की स्त्रियों में कमोवेश एक सी है ।
कामकाजी महिलाओं की स्थिति तो और भी बुरी है उनसे आर्थिक सहयोग मिलने के बावजूद उनके शारीरीक और मानसिक दोहन कर उन्हें स्वतंत्रता से दूर रक्खा जाता है ।
हमारे यहाँ चिर पुरातनकाल काल से ही स्त्रियों को सदैव पुरुषों द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा से बाहर निकलने की इजाजत नहीं है और जिस किसी ने भी यह दुर्निवार कोशिश की वही घरेलू हिंसा एवंम् पुरुष की आक्रामकता की शिकार हुयी है ।
आजकल आएदिन समाचार पत्रों एवंम् टी वी चैनल्स द्वारा दिल दहला देने वाले घरेलू हिंसा के समाचार मिलते हैं ।
एक आंकड़े के अनुसार भारत में हर पांच मिनट में एक घरेलू हिंसा से सम्बंधित घटना घट जाती है ।
जब किसी महिला या बच्चियों का उन्हीं के परिवार अथवा स्वजनों द्वारा शारीरिक एवंम् मनोवैज्ञानिक दोहन होता है अक्सर तो ऐसे मामले हमारे सामाजिक ढांचे में छिपा लिए जाते हैं ।
इस प्रकार की घरेलू हिंसा की जड़ें कितनी अन्दर तक व्याप्त हैं यह तय कर पाना मुश्किल है ।
अभी हाल ही में आई एक बहुचर्चित फिल्म के लोकप्रिय डाएलौग को बहुत प्रशंसा मिली ,
" केवल एक थप्पड़ , लेकिन नहीं मार सकता " हमारे सो कौल सुशिक्षित समाज की बदरंग हकीकत को दर्शाता है ।
एक संतोषजनक स्थिति है ।
अब ऐसे मामलों में थोड़ी- जागरूकता आ रही है ।
मीडियाकर्मियों की सजगता से पति- पत्नी , बच्चों-बुजुर्गों के प्रति होने वाले कुछेक मामले प्रकाश में आ जाने के कारण लोगों की जागरूकता बढ़ी है ।
उन्हें सपोर्ट करने हेतू सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार के कानून का भी प्रावधान किया गया है ।
हमें भी अपने चारों तरफ निगाह को चौक्कना बनाए रखने की आवश्यकता है ।
सीमा वर्मा

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Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Sahi alekh

Shekhar Verma

Shekhar Verma 3 years ago

🤫👍👍

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

बहुत खूब अच्छे आलेख

समीक्षा
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