कवितागीत
#शीर्षक
" वे बारिश वाले दिन"
मैं अलबेली
नार नवेली
सोच रही हूँ।
एक पहेली ,
अब भी क्या
मेरे गांव वाले
सावन की रुत
में बहती पुरवाई
ले चंपा मोतिया
की खुशबू ? और
नदी पोखरे के
किनारे जमी
कुकुरमुत्ते की
तरह हरी-हरी
कचूट काई जिसके
किनारे बैठी छोरियां
देखती थीं, सपने
अपने आने वाले
कल की। माँ बताओ
ना सच में?क्या अब
भी है खुशबू वैसी
ही सोंधी-सोंधी सी?
स्वरचित /सीमा वर्मा