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"मैं गलत तो नहीं "💐💐 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

"मैं गलत तो नहीं "💐💐

  • 273
  • 19 Min Read

#शीर्षकः
" मैं गलत तो नहीं " 💐💐

" शुभ्रा... ओ शुभ्रा " जरा इधर तो आओ देखो तुमसे मिलने कौन आया है?"।
पिछले ही साल तो गर्मी की छुट्टियों में राघव की शादी थी। जिसमें मीरा आंटी ने कितनी मिन्नतें की थी रुकने की। पर मैं रुक नहीं पाई थी। कारण बच्चों के स्कूल खुल गये थे। सच बताउं रुकने का मन नहीं था।
राघव, मीरा आंटी के सम्पूर्ण जीवन का केंद्रबिंदु, लेकिन कमजोर दिमाग वाला इकलौता बेटा है। अंकल किसी बीमारी से उसके बचपन में ही गुजर गए थे।

राघव दिन भर रोता , चिल्लाता, खाता और बड़बड़ाता रहता। लेकिन मीरा आंटी तनिक भी नहीं उबती , और जिसे वे अपनी सरकारी नौकरी के साथ ही बड़े ही प्यार और धैर्य से संभालती।
आस-पड़ोस वाले चाहे कुछ भी कह लें।
आंटी बहुत हौसले से जवाब देतीं,
" मेरा एकमात्र सहारा तो राघव ही है"।
और सारे लोग जिसमें मैं भी शामिल रहती खूब हंसते,
"यह कमजोर लड़का आपका सहारा कैसे बन सकता है आंटी जबकि इसे ही सहारे की जरूरत है"।
इसपर आंटी कुछ नहीं बोलती पर उन्होंने अपनी हिम्मत कभी नहीं खोई।
बहरहाल...
दरवाजे पर एक स्मार्ट सी लड़की पीले रंग के सलवार सूट , हाँथ में चाय और मिठाई की प्लेट लिए खड़ी है।
बिल्कुल मेरी आशा के विपरीत , आत्मविश्वास से लबरेज सीधे मुझसे मुखातिब होते हुए मीठी कल-कल पहाड़ी झरने सी सुरीली आवाज में बोल उठी-
"अच्छा तो आप ही हैं सुमिता जी जिनके बारे में मम्मी हमेशा बात करती हैं ,
"नमस्कार" और प्लेट रख बिंदास सी मेरे बगल में बैठ गई।
कहाँ मैं सोच रही थी किसी गांव की सीधी-सादी , गरीब-निर्धन, मजबूर परिवार से होगी?
तब आंटी ने ही बताया उसके बारे में, अपने पिता की चौथी बेटी 'शुभ्रा ' उनकी दुलारी बहू। जिसने पिता को शादी के खर्चों तथा दहेज से बचाने के लिए स्वेच्छा से उनकी इच्छा के विपरीत जा कर यह शादी की है।
तभी अत्यंत आकर्षक आवाज में शुभ्रा बातचीत का रुख मोड़ कर बोली,
" दीदी आपकी चाय तो ठंडी हो गई, मैं फिर से बना देती हूँ "
यह बोलकर उठ गई। उसके पीछे मैं भी उठ गई मुझे वो बहुत प्यारी लगी है।
उसका दोस्ताना व्यवहार देख कर मैं निश्चित हूं ,
"इस बार तो मम्मी के यहाँ इतनी चटक रंगों वाली लक्ष्मी के साथ छुट्टियां अच्छी निकलने वाली हैं "।
इसी सोच में डूबी थी मैं। तभी वह मुस्कुराते हुए बोली ,
" सुमिता जी मैं सेल्फ मेड हूँ"
"वह तो आपको देख कर ही लगता है" मेरे मुंह से अपनी तारीफ सुन कर वह जोर से हंस पड़ी,
" मैंनें सिलाई का कोर्स किया है और अपने पापा के यहाँ तो रेडीमेड कपड़ों की दुकान से जुड़े रह कर बहुत काम भी किया है"
"अरे...वाह ! तब तो तुम यहाँ रह कर अपना काम भी जारी रख सकती हो"।
"हाँ मम्मी तो यही चाहती हैं पर मैं नहीं "
फिर थोड़ी देर चुप रह कर वो चाय छानती रही।
इस बीच मैंने देखा उसने राघव को झटपट नाश्ता तैयार करके दे दिया। तथा आंटी के पूजा की सारी तैयारी भी कर दी है।
गजब की फूर्ति से भरी हुई और सहज है वो।
फिर हम दोनों तैयार चाय लेकर डाईनिंग हॉल में आ गए,जहाँ आराम से बातें करती हुई उसने बिल्कुल सहज भाव से बताया,
"जानती हैं आप? मुझे दो ही शौक हैं, एक देशाटन और दूसरा बच्चे "
"तो बस अब आराम से डे-केयर स्कूल खोलूंगी , मम्मी से बात हो गयी है वे तैयार हैं।"। फिर थोड़ा और करीब आ कर धीरे से बोली,
"एक मजे की बात बताऊं?
जानती हैं जब से शादी हुई है धीरे-धीरे सारे शौक पूरे होते जा रहे
हैं , मम्मी भी रिटायर हो गई हैं तो हम सब खूब घूमते हैं।
" राघव के बारे में भी जितना सोचा था उससे तो बेहतर ही हैं "।
यकायक मुझे यकीन नहीं हुआ क्या कह रही है ये?
फिर थोड़ा करीब आ कर मेरे कंधे पर दोस्ताना ढ़ग से हाँथ रख धीरे से बोली,
" जानती हैं आप सारे मुहल्ले वाले कहते हैं मैंने राघव से शादी पैसों के लिए किया है।"
"यहाँ तक कि मेरे मम्मी- पापा को भी यही लगता है"
अब आप ही बताएं, मैंने गलत किया है ? "।
स्वाबलंबी शुभ्रा के सुंदर मुख से यह सुन मैं हैरान रह गई ,
" मैं तो यहाँ कमजोर बेरोजगार राघव के जीवन में व्याप्त भयावह अंधेरा मात्र देखने की सोच कर आई थी"।
"जबकि लक्ष्मी ने उसके उजले पक्ष को दिखा कर कितनी सहजता से उसे रोशन कर दिया है"।
राघव के साथ उसके शादी करने के निर्णय में एक साथ कितनी सारी भलाई और समझदारी छिपी है।
तभी मेरी नजर दीवार पर टंगी उसकी शादी की बड़ी सी तस्वीर पर गयी। जिसमें बीच में राघव जिसकी बाईं ओर शुभ्रा और दाहिने तरफ मीरा आंटी। दोनों के ही खुशी से चमकते चेहरे घर के सुखद भविष्य की कल्पना से सजे हुए दिख रहे हैं मुझे।


स्वरचित / सीमा वर्मा

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Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Wow

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

अहा कहानी हो तो ऐसी

सीमा वर्मा3 years ago

बेहद आभार सर 🙏🏼

दादी की परी
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