कहानीलघुकथा
#शीर्षकः
" कचरे- वाला"
" ऐ ...हटो-हटो यह क्या कर रहे हो तुम? शर्म नहीं आती तुम्हें अभी पढ़ने और खेलने की उम्र में गंदगी के ढ़ेर से खेलते हो "।
कचरे वाली गाड़ी में से नौ साल के रामू को कुछ बीनते देख रमा बोली।
वो सुबह की सैर करके वापस घर आ रही थी। माना कि रमा ने कोरोना वैक्सीन लगवा रखा है। पर रामू ? वह तो छोटा बच्चा है।
रमा को डर लगा कंही कचरे में फिंके किसी शीशे से उसका हाँथ न कट जाए।
" चिंता न करो आंटी जी यह देखो मैंने ग्लब्स पहन रखे हैं।
और देखो मास्क भी लगा रखा है"
उसने सिर घुमा कर रमा की ओर देख कुछ इस तरह से गोल-गोल आंखें नचाईं और हाँथ को झटके से उपर- नीचे करते हुए कहा ।
कि रमा की हंसी बरबस ही छूट गई।
"घर से तुलसी की चाय पी कर आता हूँ, और जाकर गर्म पानी से नहाता भी हूँ"।
" हाँ-हाँ ठीक है। लेकिन आखिर करते ही क्यों हो यह गंदा काम?"।
रमा झुंझला गई।
"जी बस आप जैसे लोगों की वजह से "
" क्या ? "
प्रति उत्तर सुन रमा और भी बौखला गई,
" बदमाश कंही का क्या बकता है ? इत्ता सा मुंह और इत्ती बड़ी बात "।
"बक नहीं रहा हूँ मां जी सच्चाई बखान कर रहा हूँ "
वो ऐसी बात है कि सरकार और सफाई कर्मचारी के बार-बार कहने पर भी कि,
"गीला और सूखा कचरा अलग-अलग रखें आप लोग बाज कहाँ आते हो?"
"सब एक ही में मिला देते हो। जिससे कितनी बरबादी तो होती ही है। बाबा को लगभग रोज ही ठेकेदार की बात सुननी पड़ती है वो अलग "।
" मैंने सोचा क्यों ना मैं ही उन्हें साथ-साथ में अलग-अलग करता चलूँ"।
" तो आप ही बताओ अगर आप खुद इसे अलग थैली में डाल कर देतीं तो मुझे भी क्या जरुरत थी इसमें हाँथ डालने की"।
साथ ही में आंटी जी इसमें आपलोग इतनी सारी रोटियां डाल देते हो वो मैं चुन कर गायों के नाद डाल देता हूँ। जिससे उनकी भूख मिट जाती है"।
अब बारी है रमा के शर्मिंदा होने की वो मन ही मन निर्णय लेती हुईं कि ,
"अब से दोनों तरह के कचरे को अलग कर के ही गाड़ी में डालेगी "
झेंपती हुई गेट खोल अंदर चली गई।
स्वरचित / सीमा वर्मा
शहर/ पटना
बिहार