Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
"हिप-हिप हुर्रे " 💐💐 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

"हिप-हिप हुर्रे " 💐💐

  • 183
  • 12 Min Read

#शीर्षक
" हिप-हिप हुर्रे "
"हुर्रे यह मारा "
ननकू उछल पड़ा। ऊंची छलांग कूद में पूरे जिला स्तर पर ननकू का दूर-दूर तक कोई मुकाबला नहीं है।

हमारे देश में वक्त और हालात की मार से जन्मे न जाने कितने ही गरीब लेकिन हुनरमंद ऐसे कलाकार हैं। जो ना सिर्फ अपनी कला से सबका मन मोह लेते हैं। बल्कि अगर उन्हें समुचित निर्देशक और सही खान-पान मिले तो हमारा देश भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोने-चांदी के मेडलों से मालामाल हो जाए।

इन दिनों ननकू के गांव हरिहरपुर में
भी विश्व ओलंपिक की चर्चा के साथ ही राज्य स्तर पर खेल कूद प्रतियोगिता की तैयारी चल रही है। जिसके लिए वह जी जान से लग कर तैयारी कर रहा था।

लेकिन जब से ननकू के बाबा बीमार हुए हैं। एवं उनका इलाज चल रहा है।
उन्हें अपने खेतों की चिंता सताती रहती है। लेकिन उनकी अनुपस्थिति में भी ननकू ने खेती-बारी के सारे काम-काज को सही ढंग से देखा है।

अब उसके बाबा उसकी प्रतियोगिता के अभ्यास को ले कर चिंतित रहते हैं,
" बेटा कंही तुम्हारे कलाबाजी दिखाने के शौक अधूरे न जाएं"।
जबकि ननकू को यह संतोष है कि,
"मेरा जो होगा वह देखा जाएगा।
कम से कम बाबा की परेशानी तो छूमंतर हो गई है।
वह तत्परता पूर्वक कहता है
"नहीं-नहीं बाबा!आप ज्यादा मत सोचो"।
मैंने अपने तमाम कार्यों को पूरा करते हुए भी अखाड़े जा कर अभ्यास करना नहीं छोड़ा है"।

ननकू वहाँ लगे टीवी पर खेल समाचार सुन-सुन कर भी उत्साहित होता है।

उसकी सच्ची लगन और प्रतिभा देख कर अखाड़े के बड़े गुरु जी भी हतप्रभ हैं।
वे सदैव उसकी आंखों में उम्मीद की किरण जगाते रहते हैं।
" क्या हुआ ननकू जो तुम किसान के घर पैदा हुए?
तुम्हारी इस स्वाभाविक कला को किसी उस्ताद की जरुरत नहीं है "।
" आखिर चिड़ियों को उड़ना,भंवरों को गुनगुनाना और फूलों को खिलना किसने सिखाया?"
"वे स्वंय ही तो उड़ना , गुनगुनाना और खिलना सीख लेती हैं"।
"ठीक वैसे ही तुम्हारी कला भी नैसर्गिक है बचबा"।

यह सुन ननकू का सीना तन कर और भी चौड़ा हो जाता है। गुरुजी को ननकू की ईमानदारी और उसके हुनर पर बहुत विश्वास है।
बाबा के बीमार हो जाने की विकट घड़ी में भी ननकू ने अपना धैर्य नहीं खोया है। बल्कि उसी लगन से अपने आत्मविश्वास को जगाए रखा है।
जिसे देख ही गुरु जी बराबर उसकी पीठ पर हाँथ रख,
"वक्त और हालात से बड़ी और कोई पाठशाला नहीं है ननकू,
"बस तुम अन्य कार्य के साथ इसी तरह अपने अभ्यास भी जारी रखो"।
"इस बार की प्रतियोगिता में विजय श्री तुम्हारे हाँथ अवश्य लगेगी "।

शायद गुरु जी को ननकू में अपना अक्श दिखता है?।
और उनकी आशा के अनुरूप ही ननकू अपनी एंट्री सफलता पूर्वक प्रतियोगिता में करवा पाता है।

स्वरचित /सीमा वर्मा

FB_IMG_1627269232363_1627294948.jpg
user-image
Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

वाह 😍

Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Bahut sunder

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

वाह सच्चाई है बिल्कुल

सीमा वर्मा3 years ago

जी हार्दिक धन्यवाद

दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG