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जुगनू - Pratik Prabhakar (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकअन्यलघुकथा

जुगनू

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जुगनू

दो-तीन दिन की बारिश के बाद पेड़ों में मानो नई जान सी आ गयी थी, पत्तियाँ हरी भरी हो गयी थीं ।ये इसीलिए भी हुआ था कि पेड़ों के पास में जो कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था उससे निकले धूल को बारिश की बूंदों ने एक एक कर के पत्तों से हटा दिया था जैसे माँ की हाथ की थपथपाहट से बच्चे को नींद आ जाती है।

कितना सुहाना मौसम!, शाम वाली धूप भी होती है नाम मात्र की ,आसमान में बादल अब भी दस्तक़ दे रहे थें। ऐसे में किसी का भी दिल आशिक़ सा हो जाये , गुनगुनाये, बलखाये। पर तभी स्ट्रेचर के चक्कों की उबड़ -खाबड़ सड़क के साथ जंग ने ध्यान खींच लिया।

स्ट्रेचर पर सफ़ेद कपड़े से ढंकी थी लाश। और दो वार्ड बॉय के अलावा एक प्रौढ़ महिला और एक जवान लड़का। महिला को सहारा देते हुए ला रहा था लड़का। आसूँ उसके आँखों में भी थे पर बह ज्यादा महिला के आँखों से रहे थे। एक नदी पर बने बांध के टूट जाने के बाद जो जल के बहने की आवाज होती है कुछ वैसी ही उस महिला के मुँह से निकल रही थी।


लाश पोस्टमार्टम सेंटर के बाहर पेड़ के नीचे परीक्षण का इंतज़ार कर रही थी। नीले फूल हवा के झोंके से नीचे गिर रहे थे एक एक, टप टप.....। उजले चादर पर ये नीले फूल और भी नीले लग रहे थे। धीरे धीरे सफ़ेदी घटती जा रही थी और नीलापन बढ़ता जा रहा था। मानो ये फूल विदाई दे रहे हों मृत शरीर को श्रद्धा सुमन बनकर।

अब जब पोस्टमार्टम रूम में लाश को ले जाना था तो वार्ड बॉयज ने सारे फूल वहीं गिरा दिए नीचे। और लाश पर ढंकी चादर फिर सफ़ेदी से भर गई। ये मानो ज़िंदगी को दिखा रही हो कि आज यदि कुछ नहीं तो आगे सबकुछ आएगा, अभी मायूसी है तो कभी बहारें आयेंगी।

महिला और ज़ोर से रोने लग गयी थी। उसके और परिजन भी आ गए थे। सब कह रहे थे , नियति के आगे किसका चला है। महिला लड़के से लिपट रो रही थी और तब तक रोती रही जब तक की लाश परीक्षण के बाद वापस न आ गयी।

अब मृत शरीर को फिर से बाहर लाकर स्ट्रेचर पर रखा गया। अब लाश को कैसे ले जाना है यह तय करना था। तब एक परिजन ऑटो के साथ आये। ऑटो पर लाश जाए तो जाए कैसे तो यह तय हुआ कि धान के पुआल को रखकर लाश को पैर रखने की जगह पर लिटा दिया जाए। फिर महिला और लड़का उस बीच वाली सीट पर बैठ गए और लाश उनके पाँव के नीचे।

गोधूलि की बेला हो चली थी। ऑटो स्टार्ट हुआ और इधर उसके आवाज़ में महिला की सिसकियों की आवाज़ दब रही थी। स्ट्रेचर को जब वार्ड बॉय ले जा रहे थे। उनके पैर मुरझाये नीले फूल पर पड़ रहे थें। और फिर उनसे जुगनू निकलने लगे जो कब से छिपे बैठे थे कि कब शाम हो और वो उड़े।

उधर किरोसिन मिक्स डीज़ल पर चल रहे ऑटो से काला धुआँ निकल रहा था तो इधर जुगनुओं से थोड़ा-थोड़ा उजाला हो रहा था। लड़के ने पीछे मुड़कर देखा उसे लगा उसके पिताजी जुगनू बन आकाश में जा रहे थे ।

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दादी की परी
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