कविताअतुकांत कविता
श्रद्धेय नीरज जी को
समर्पित,,,,
कारवाँ गुज़र गया,,,,
भोर हुई सपने सजे
पंछियों के साजो पर
प्राणों के तार सजे
पेड़ों के झुरमुट में,,,,,
पंछियों का क्रिया कलाप देखते रहे,,,,,कारवाँ
मंदिरों के द्वार खुले
पूजन की थाल सजे
दीपक की जोत जले
घनघनाती घंटियों के बोल गूँजते रहे,,,,,,
गाएँ रम्भाने लगी
बछड़ों में होड़ लगी
आँचल में माँओं के
नेह भरी ममता का खेल देखते रहे,,,,,,,
शीतल बयार चले
जुही हरसिंगार खिले
भ्रमर बड़े मनचले
पुष्प के पराग का पान देखते रहे,,,,,,
नदियों में नीर बहे
झरनों की प्रीत कहे
नौकाविहार में
पानी से पतवारों का खेल देखते रहे,,,,,
मीरा की भक्ति है
मोहन की मुरली है
गोकुल की गलियां हैं
कृष्ण और राधिका की प्रीत देखते रहे,,,,,
अलसाई पलकें हैं
लोरी नींद लाई है
पूनम की रात है
असमानी तारों में ख़्वाब देखते रहे,,,,,
क्षणभंगुर जीवन है
आना व जाना है
साँसों का खेल है ये
जीवन का मृत्यु से संघर्ष देखते रहे,,,,,,
आंखों पे पट्टिका है
गीता पर हाथ है
सत्य की गुहार है
अन्याय भरी दुनिया में न्याय खोजते रहे,,,,
पथरीले बागों में
कैक्टस के काँटों में
पेड़ों के ठूठों में
टेसू के फूलों का रंग ढूंढते रहे,,,,,,,
गजरा ना चूनर है
ना माथे पे बिंदिया है
ये कैसी दुल्हन है ?
द्वार खड़ी डोली का श्रृंगार देखते रहे
तिरंगे में लिपटा महावीर देखते रहे
सरला मेहता
स्वरचित
इंदौर