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"थप्पड़" - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

"थप्पड़"

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  • 12 Min Read

लघुकथा #शीर्षक
"थप्पड़ "
मेघा भयंकर ऊहापोह में डूबी है "आखिर क्या करे वो गृहस्थी के इस दर्द का ,
सुधीर की अम्मा की सख्ती , तमाम तरह की बंदिशें , खुद सुधीर की नापाक इच्छा और अजीब तरह के रिश्तों से टकराना और फिर उससे घबरा कर भागना ..."?।
आज उसकी जिन्दगी कैसे दो चौराहे पर खड़ी ,हताशाओं से घिर गई है। जहाँ से आगे ... उसे कुछ सूझता नहीं।
चार बहनों में तीसरे नम्बर की मेघा का विवाह दस वर्ष पहले पांच बहनों से सबसे छोटे सुधीर के साथ सम्पन्न हुई थी।
जो स्वभाव से बेहद जिद्दी और हठी भी है ।
इन्जीनियर दामाद के लालच में मां - बाबा ने अपनी हैसियत से बढ़ कर दान दहेज दे करविदा किया था ।
विवाह के कुछ वर्षों के उपरांत ही वह दो प्यारी- बेटियों जया , विजया की मां बन गई है। बस यहीं से सारी समस्याओं की शुरुआत हुई है।
खैर वक्त और परिस्थितियों को साधते हुऐ मेघा की अपनी जिन्दगी दो बच्चियों के सहारे शांत और सीधी चल रही है। कि मां जी के आने की खबर क्या आई मानों कयामत आ गई ?।
मांजी भला कब दो पोतियों से संतुष्ट रहने वाली हैं ? वे तो वंश की वृद्धि में चार चांद लगाने वाले पोते की अनंत प्रतीक्षा में हैं।
और सुधीर वे कब मानने वाले हैं ?
इन सबके बीच मेघा अगर उसके मन की कहें तो "?
मां -बेटे की इस बेवजह , अनर्गल मांग के आगे उसकी अपनी जिन्दगी टूटी - फूटी लगने लगी है ।
आखिर कब तक चौराहे पर खड़ी रहेगी वह ?
अभी कल ही की तो बात है रात को खाने की मेज पर , फिर वही सवाल , कभी ना खत्म होने वाली बहस मेघा ने जवाब दे कर मानों अल्प- विराम लगाना चाहा था '
" मां जी मेरी दोनों बेटियां ही काफी हैं " ।
" हां क्या कहा , बेटियों से खानदान चलेगा "?
मेघा के धैर्य ने जवाब दे दिया आखिर क्यों चुप रहे अब बात उसकी नहीं बेटियों की है।
धीरे से बोली ,
" तो ना चले ऐसे भी कौन से नामचीन ... आगे की मुंह में ही रह गई । अगले ही पल
" चटाक"
एक झन्नाटेदार थप्पड़ पड़ा गाल पर और वह सम्वेदना शून्य हो गई बाकी का कुछ सुन नहीं पाई सिर्फ कातर कण्ठ से ...
" ये क्या ...क्या है ये सुधीर"?
जया विजया के स्पर्श से नर्म पर सकती थी शायद। लेकिन वे सो चुकी हैं ।
भीतर की अव्यक्त यन्त्रणा को प्रकट करने की और कोई भाषा ना पाकर कराहती हुई सामने की दीवार पर सिर दे मारी ।
फिर तो लाख प्रयत्न करने पर भी इतने दिनों के वैवाहिक जीवन की मर्यादा ना रख पाई मेघा।
आज उसकी जिन्दगी एक ऐसे चौराहे पर खड़ी थी जहाँ से हर कोई सही रास्ता ना पाकर शायद भटक जाए ।
सहसा एक कड़वी हंसी हंस कर बोली ,
" बहुत तो किया सुधीर लेकिन बस अब और नहीं " कहती हुई मजबूती से उठ खड़ी हुयी ... कदम घर से बाहर निकालने को तत्पर अपनी बेटियों को उठाने लग गई है।

सीमा वर्मा
पटना

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Shekhar Verma

Shekhar Verma 3 years ago

lajwab

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

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