Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
पराई होती हैं बेटियां - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

पराई होती हैं बेटियां

  • 380
  • 6 Min Read

*पराई होती हैं बेटियाँ*

पर्वत शिखर व श्रृंखला दोनों उदास हैं। श्रृंखला याद करती है," कितने खुश थे हम जब सलिला बिटिया मेरी कोख से उद्भवित हुई थी। आपको तो मानो कुबेर का खज़ाना ही मिल गया था। "
शिखर भावातिरेक में बोला, " हाँ, कितनी अल्हड़ मासूम थी तब। बस सारा दिन कुलांचे भरती रहती थी। मेरी गोद में एक चोटी से दूसरी पर छलांग लगा मुझे भिगोती रहती थी।"
श्रृंखला उलाहना देती है, "आपने ही उसे मैदानों में कुछ नया अनुभव लेने भेज दिया। सीखा क्या खाक, कहीं हरियाली ओढाई तो कहीं मंदिर घाट बनाए। बस यही सब करते जवानी में ही रुग्णा सी हो गई।"
शिखर से रहा नहीं गया। अपनी रो में भड़ास निकालने लगा कि उसे पढ़ाई के लिए भेजा था।
लेकिन वह सागर द्वारा छली गई। हमारी भोली सलिला को पता ही नहीं चल पाया कि सागर की कई प्रियतमाएँ हैं कान्हा जैसी। वे सब अपनी सुधबुध भूल सागर के हरम में कैद हो चुकी है।
श्रृंखला आह भरती है, "इस धरा पर जो नारी का हश्र होता है, वैसा ही हमारी बेटी का भी होगा। ज्यों ही सागर संग उसके फेरे होंगे उसका मधुर अस्तित्व खारा हो जाएगा। "
शिखर सान्त्वना देता है, "अब सोचो मत, बेटियां तो होती ही पराई हैं। "

logo.jpeg
user-image
Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

मर्मस्पर्शी

दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG