कहानीलघुकथा
*फ्रेंडशिप बेल्ट*
मम्मा व दादी के उपवास त्यौहार क्या आते कि चुन्नू के मजे," अरे वाह ! आज फिर साबूदाना खिचड़ी व मखाने की खीर मिलेगी। "
दशामाता दशमी हो, वटसावित्री व्रत हो या सोमवती अमावस्या बस दादी की तैयारियाँ शुरू हो जाती। और चुन्नू जी सुई के साथ धागे की तरह चल पीछे लगे रहते। कभी तुलसी माता की परिक्रमा तो कभी बरगद की। कथा भी बड़े ध्यान से सुनते कि कैसे सावित्री ने पति सत्यवान की जान बचाई थी।
जिज्ञासावश चुन्नू पूछे बिना नहीं रहता, " मुझे ये समझ नहीं आता कि बेचारे इन पेड़ों को इतना कस कर क्यों बाँध देती हैं सब आँटी लोग। दादी प्यार से समझाती है, "बेटू, जैसे राखी बाँधते हैं और हाँ तुम लोग वो फ्रेंडशिप बेल्ट एक दूसरे को बाँधते हो। बताओ क्यों करते हो ? "
चुन्नू चट से जवाब देता है, " दोस्ती पक्की करने का वादा करते हैं दादी। अरे हाँ आप हर शनिवार को पीपल को छूकर के दीया भी तो जलाती हो। क्यों भला ?"
दादी हँसती है, " अच्छा तो सुनो मेरी कथा। पीपल सब पेड़ों से ज़्यादा ऑक्सीजन छोड़ता है। इसीलिए हम पेड़ों की पूजा करते हैं। उन्हें मौली या सूत से बांधकर अपना दोस्त बनाते हैं। और ये वादा करते हैं कि उनकी रक्षा करेंगे। तभी तो वे हमारा जीवन बचाएँगे।"
चुन्नू ताली बजाता है, "सब समझ गया मेरी टीचर दादी।"
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित