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" बदलते रिश्ते " - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

" बदलते रिश्ते "

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लघुकथा #शीषर्क
"बदलते रिश्ते "
अनीता जी रोज ८. २० की लोकल से अपने ऑफिस के लिए निकल जाती है।
फिर उनकी वापसी रात की ८ बजे वाली लोकल से ही हो पाती है।
वह अपनी पूजा के पाठ - अर्चना भी गाड़ी में ही कर लेती है ।

विगत छह वर्षों से उसकी यही दिनचर्या चल रही है । इसमें चेंज के नाम पर अगर कुछ है। तो वह " किन्नर मँजुल "।
जो उस नाचने - गाने वाली झुंड में शामिल रहती है।
पर अनीता के पास आते ही ठिठक कर खड़ी हो जाती ।
जहाँ अन्य सब बेशर्मी से हाँथ नचा - नचा कर पैसे माँगती हुयी यात्रियों की गोद में बैठ रही होतीं। वहाँ मँजुल की आंखों में विवशता साफ झलकती ,। उसकी शर्म अभी बाकी है।
उसे पास देख कर अनीता भी खुश हो जाती है। एक दिन तो वह भावतिरेक में भर पूछी बैठी ,
" तुम्हारा घर कहाँ था बेटी ? शायद ही किसी ने मँजुल से इतने मीठे से बात की हो ।
" लखीमपुर " चाची , ।
" तुम चलोगी मेरे साथ ? यह सुन मँजुल की आँख में चमक उभरी और फिर तुरंत बुझ भी गई।
उसने सिर्फ़ दोनों हाँथ जोर दिए ।
और बेबसी से गिरोह की सरगना झल्लो मौसी की ओर देखा , जिस के चेहरे पर सपाट और असपष्ट रेखाएं खिंची हैं? ।
अनीता को मँजुल उसकी अपनी कोख जाई की याद दिलाती जिसके जन्म लेते ही उसका त्याग उसे घरवालों की जबर्दस्ती से करना पड़ा था ।
अब तो उनके पति मनोहर जी भी स्वर्ग वासी हो गए हैं ।
इस बड़े और भीड़ -भाड़ भरे शहर में वह नितांत अकेली रह गई है।
" काश मँजुल का साथ मिल जाता तो कम से कम हम दो माँ बेटी का साथ तो निभ जाता "।
फिर उस दिन गाड़ी के रूकते ही वह ना जाने किस अदृश्य शक्ति के वशीभूत और प्रेरित हो मन में दृढ निश्चय कर मँजुल के हाँथ थाम कर गाड़ी से उतर गई ।
उन्हें ऐसा करते हुए जरा भी डर नहीं लगा ।
झल्लो ने कनखियों से देखा और मुंह फेर पीछे पलट गई यह सोच कर कि ,
"आखिर किसी ने तो मान रखा हमारा ..."

स्वरचित/ सीमा वर्मा

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Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Bahut sunder

Shekhar Verma

Shekhar Verma 3 years ago

ahahaha

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

प्रेरणादायक

दादी की परी
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