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"एक कप कौफी और तुम"
पुल के उपर खड़े विकास और अनु बातें कर रहे हैं ।
अनु को विश्वास ही नहीं हो रहा है सामने खड़ा विकास ही है । "हामिद " जिसने ना जाने कितनी अनूठी प्रेमकथा विकास के उपनाम से प्रसिद्ध पत्रिका में लिखी हैं। और वह स्वयं जिसकी दीवानी है। उन दोनो ने कितनी बातें की है औनलाइन चैट पर।और जिसे वो कितना करीब महसूस करती है।
"ओहो तो तुम्ही हो मेरे फेवरिट हामिद जिसे मैं चाहती हूँ "।
और जिसे बिना मिले ही जो मेरे दिल के इतने करीब है।
हामिद पहले तो उसकी आंखों में आंखें डाल कर देखता रहा फिर बोला,
"हूँ... कितना और फिर तुम विकास की दीवानी हो या हामिद के"?
सोच में पड़ी पहले अनु फिर मुस्कुरा कर ,
"यही तो सोचने वाली बात है "
"अच्छा तुमने मेरी कहानियां पढ़ी है" ? हामिद ने पूछा।
"पढ़ी है क्या मतलब है तुम्हारा ? मैं जीती हूँ उन्हें "
अनु बच्चों की तरह मचल कर बोली ।
हामिद के लिए यह नयी जानकारी है उसे बहुत आश्चर्य हुआ। फिर भी अपने आप को काबू में रख कर अनु को देखा और धीमे से उसकी कलाई थाम ली।
" आज तुम मेरे घर चलो वहीं हम कौफी पिएगें "
वे दोनों पुल से उतर कर नीचे मैदान में आ गए हैं।
"घर फिर चलेगें बाद में कभी आज चलो कौफी हाउस चलते हैं।
कुछ पल अनु हामिद के चेहरे को बहुत पास से मीठी नजर से देखने लगी।
हामिद भी बहुत दिनों बाद तृप्त हो कर मुस्कुरा रहा था ।
इस क्षण को बरकरार रखते हुए अनु ने मुलायम स्वर में कहा, "चलें फिर कौफी हाऊस पीते हैं साथ में कौफी "।
जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरु हो चुका है एक नया गीत गाया जाने वाला है अनु धीरे से बोल चल पड़ी है हामिद के साथ ।
सीमा वर्मा / मौलिक