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बरगद की छाँव - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

बरगद की छाँव

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"बरगद की छाँव"

सावन बाबा मुँह अंधेरे कावड़ ले चल देते पोखर ताल की ओर। अपने
लगाए पेड़ पौधों की प्यास बुझाने। कहाँ कहाँ नहीं गए नए पौधे लाने व बीज गुठली जुटाने। देखते ही देखते बियाबान फ़ल फ़ूलों से लद गया।
आज बुखार से तप रहे हैं। झोपड़ी खुली देख गाँव का भैरव अपने साथियों के साथ आकर
कहता है, " बाबा, अब आप जंगल नहीं जाएँगे।
आपने इस गाँव के लिए सारी ज़िन्दगी झोंक दी। अब हम इस जंगल की देखरेख करेंगे। फ़ल फ़ूल पत्ते बेचकर नदी पोखर की गाद निकाल एक नहर जंगल तक बनाएँगे। अब आप आराम करिए। " बाबा ने याद दिलाया, " अरे बेटा, मेरे सारे पंछी भी राह देख रहे होंगे। उन्हें दाना पानी याद से रख देना।"
भैरव यकायक पूछ बैठा, बाबा, आपको यह हरियाली का विचार कैसे सूझा ? "
बाबा शांति से बोले, " ये मेरे घर पर बरगद का छाता देख रहे हो ना, मेरे दादू ने लगाया था। जब पूरा गाँव गर्मी से त्रस्त होता, मैं, माँ बापू के साथ ठंडी हवा का मजा लेता। बस पेड़ों का होकर ही रह गया। अब यही मेरा परिवार है। बस इसी को और भी लहलहाते देखना चाहता हूँ।"
सरला मेहता

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

अच्छी रचना

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