कहानीलघुकथा
#शीर्षकः
" दिल दीवाना"
" यह लो सुधा अब इन्हें ही अपने सुख-सुख के भागी बना लो "
मांजी ने छोटे से 'कान्हा जी' उसकी गोद में डाल अपनी सिसकियां समेट लीं।
"अभी उम्र ही क्या है तुम्हारी,
नहीं तुम्हें ऐसे नहीं देख सकते हम ?"।
क्या करे सुधा? अचानक हृदयगति रुक जाने से मनोहर जी की हुई मृत्यु से उसकी हालत बिल्कुल विक्षिप्तों जैसी हो गई है।
उसे ना अपना ध्यान रहा है। ना ही घर परिवार का।
यह देख मां जी भी परेशान हो उठी हैं।
दुनिया रुकती तो नहीं है किसी के चले जाने से उन्होंने भी तो अपना बेटा खोया है। वे सुधा के पास ही बैठ कर मीठे स्वर में यह भजन गाने लगींं"
सांवली सूरत पे तेरे, मोहन दिल दीवाना हो गया , दिल दीवाना हो गया मेरा दिल दीवाना हो गया ... "
माँ जी को इस तरह गुनगुनाते देख सुधा की चेतना जाग गई। और वे हैरान सी देख कर सोच उठी,
"जब इस उम्र में मांजी मजबूत हो रही हैं तो मुझे भी धैर्य रखना ही होगा"।
ईश्वर जब एक दरवाजा बन्द करते हैं। तब दूसरा खोल भी देते हैं ।
स्वरचित / सीमा वर्मा