कहानीबाल कहानी
#शीर्षक
मिनी ...
जब से मिनी मुम्बई आई है खोई-खोई सी है ।
दादा-दादी , बुबु - चाचू सबको मिस करती है । वहाँ के वह सात कमरे बड़े से बरामदे और विशाल वृक्षों से हरे-भरे बागीचे वाला घर यादों से निकलता ही नहीं है ।
फिर भी ... इस हाई सोसायटी के तीन कमरे में सिमटी मिनी यहाँ के माहौल में रचने -बसने की कोशिश करती हुयी उस दिन बालकनी में बैठी हुयी सोच रही थी।
कितनी उंची इमारतें और यह उपर-नीचे आने जाने के लिए काली सी लिफ्ट पहले तो वह उसमें प्रवेश करने में ही डरती थी पर अब धीरे-धीरे अभ्यस्त हो चली है ।
ना भागदौड़ , ना उछल कूद बस बालकनी में बैठी-बैठी कबूतरों या गार्ड अंकल को देखते रहो ।
इस समय दादी के पास रहती तो कितना मजा रहता ।
तभी उसकी नजर बगल वाले ब्लॉक से निकल एक दादाजी जैसे व्यक्ति पर पड़ी वह खुशी से चिल्ला पड़ने ही को थी कि तभी मम्मा आ गई वे भी उन्हें ही देख रही हैं ।
मम्मा ने नजर भर कर उन्हें देखा और फिर मिनी को ।
उसकी आँखों की कोर में मोटे-मोटे आंसूं देख समझ गईं पूरे माजरे को ।
उनके पीछे दादी के हाँथ थामे बिल्कुल मिनी जैसी ही लड़की पर नजर जाते मुस्कुरा दी मम्मा और मिनी से बोली ,
" वो देखो मिनी बिल्कुल तुम्हारी जैसी ही है वो गुलाबी फ्राक वाली दोस्ती करोगी ? "
मिनी कुछ न बोल कर सर हां में हिला दी ।
फिर मम्मा के हाँथ थामे लिफ्ट से उतर उन दादा जी के पास जा कर खड़ी हो गई वे दोनों चुपचाप ।
अब उन दादी जी की बारी थी वे उदास सी मिनी और उसकी मम्मा को देख जैसे सब समझ गई ... फिर पहल करती हुयी मुस्कुरा दीं और बोली ,
" मेरे पास आ जाओ बिन्नो रानी आज से मैं तुम्हारी दादी और ये पिंकी तुम्हारी नयी सिस्टर " ।
मिनी ने मम्मा की ओर देखा
ओह ... ये तो मम्मा भी हंस पड़ी हैं।
देख मिनी ने पिंकी के हाँथ पकड़ लिए और दादी की ओर संकोच भरी मुस्कान से देखने लगी ।
स्वरचित / सीमा वर्मा
पटना